जीवन में एडजस्ट करते-करते आप लापता तो नहीं हो गए
हाल ही में मेरी अक्ल की दाढ़ में दर्द हुआ। मैं डेंटिस्ट के पास गई, उसने कहा निकलवा दो। क्या! एक तो इतनी देर से अक्ल मुझमें प्रकट हुई थी। अब उसे भी निकलवा दूं? सर्जरी की तकलीफ अलग। मगर क्या करूं, मामला कुछ ऐसा ही है। खैर, अक्ल से जुदा होने के पहले कुछ अक्ल वाली बातें ही हो जाएं।
अखबार खोला- हेडलाइन है कि शेयर बाजार और बढ़ गया। भई वाह! लेकिन आज भी देश की सिर्फ 3% जनता उसमें इन्वेस्ट कर रही है। लोगों को एफडी से प्रेम है, जहां पैसा सुरक्षित है, मगर ज्यादा लाभ नहीं। तो आज एक नया कदम उठाइए, एक हजार रुपए प्रतिमाह म्यूचुअल फंड में निवेश कीजिए।
तभी फोन आता है, सर- लोन चाहिए? लेकर फॉरेन ट्रिप पर जाइए। सिर्फ ईएमआई भरना पड़ेगा, बिल्कुल टाइम नहीं लगेगा। करते-करते ईएमआई चार हो गए। फिर से हम लाचार हो गए। ईएमआई देना है तो सिर्फ घर की या फिर पढ़ाई। नहीं तो पछताओगे मेरे भाई।
पछतावा तो और चीजों का भी होने वाला है। जिसने पैसे की पूजा की, वो रोने वाला है। हर सर्वे, हर स्टडी का कहना है कि प्यार ही जीवन का गहना है। मुस्कराकर कह दीजिए, आज चाय अच्छी बनी है। आपकी बीवी की जो भी उम्र हो, दिल से वो बच्ची है। फोन से नजर हटाकर उन्हें गौर से देखिए। आंखों से प्रेम के तीर फेंकिए।
शादी के स्टेज पर सब ऐलान करते हैं, फिल्मी डायलॉग से कान भरते हैं। ‘आई लव यू फॉरएवर मेरी डार्लिंग’ फॉरएवर का मतलब- जब तक आसान। कुछ महीने, कुछ साल बाद वो कसमें-वादे अब कुछ नहीं याद। घर-गृहस्थी में तो भाई ऐसा ही होता है। जो एडजस्ट ना करे वो रोता है। बात ठीक है। मगर ऐसा भी तो नहीं कि एडजस्ट करते-करते आप लापता हो गए। तो कभी-कभी सब्जी-दूध-बच्चे को भूल जाइए, दिल की गहराई में लाइफ पार्टनर को डुबकी लगवाइए।
घबराइए मत, पार्टनर जी कि मुझे तैरना नहीं आता। जैसे बारिश हो रही हो और आप पकड़े हों छाता। बस ऐसे मिजाज से उनकी बातों को सुनना है, साझेदारी का एक स्वेटर बुनना है। लिखते-लिखते मेरी आंखें भर आईं हैं, अब कविता नहीं हो पाएगी।
ऐसा सोचा मगर अगली पंक्ति टाइप करते-करते शायद हो जाएगी। जीवन भी कुछ ऐसा है, बहते पानी जैसा है। रुकता नहीं, थमता नहीं। जब तक भयंकर ठंड हो, जमता नहीं। तो फिर अपने अंदर के उजाले पर ध्यान दीजिए, अपने अस्तित्व का सम्मान कीजिए।
कोई इस दुनिया से चला गया, आपको छोड़कर। कोई दुनिया में है, मगर मुंह मोड़कर। मगर फिर भी आप खुश रह सकते हैं। कर्मों का फल समझकर सह सकते हैं। जो होना था रोक ना सके, तो हंसकर ही जी लें। काली-घनी रात में घास में लेटकर तारों की छांव को पी लें।
कोई ऐसा क्यों है, वैसा क्यों है, सोचने से कोई फायदा नहीं। हर वक्त कुढ़ते रहना जीवन का कायदा नहीं। जो जैसा है, वैसा ही रहेगा। स्टेज पर आने वाला डायलॉग ही कहेगा। बस सोच लीजिए, ये सब नाटक है। इसको सीरियसली लेना घातक है। अंत में परदा गिरने वाला है। वहां कुछ नहीं सब काला है।
इस जन्म का चित्रगुप्त हिसाब लगाएंगे, तो उसमें क्या-क्या एंट्री पाएंगे। जो दिल से, खुशी से दिया, उसका क्रेडिट मिलेगा। जो छीना-झपटा, उसका डेबिट दिखेगा। जीवनकाल के बैंक बैलेंस में जो दम था, वो तो सिर्फ एक भ्रम था। असली दौलत आत्मा के उद्धार में थी। जो कमियां, उसके सुधार में थी।
लिखने चली थी हंसी- मजाक वाला लेख। लेकिन अंगुलियों से की-बोर्ड पर टपके जज्बात अनेक। ये था मेरा अपने आपसे संवाद। पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अब चलती हूं डेंटिस्ट के पास। दुआ कीजिए दर्द न हो खास। वैसे दाढ़ निकलेगी, अक्ल कहां जाएगी। मेरे अंदर ही सुख पाएगी।