संघर्ष से आंख मिलाकर कहो, ‘हां, मुझे मंजूर है…’
25 साल के नौजवान ने नौवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या की’। हाल ही में ये खबर पढ़कर मन बहुत दुखी हुआ। ये नौजवान आईआईटी- आईआईएम ग्रैजुएट था। जानी-मानी एमएनसी मैकिंजी एंड कंपनी में नौकरी कर रहा था। उसके दोस्त कहते हैं बड़ा ही सुशील और समझदार भी था। फिर, आखिर क्यों?
कहा जा रहा है कि काम का दबाव बहुत बढ़ गया था। शायद सीनियर्स से कुछ अनबन हो गई। हो सकता है उसकी जॉब खतरे में हो। सच क्या है, मुझे पता नहीं। पर सोचने की बात है कि कोई नौकरी क्या अपनी जान से ज्यादा प्यारी होती है?
हर स्टूडेंट सोचता है, अगर मैं आईआईटी या आईआईएम में पहुंच जाऊं, तो लाइफ बन जाएगी। जिसे दोनों में एडमिशन मिला हो, उसके क्या कहने। लेकिन आप ये नहीं जानते कि आईआईटी-आईआईएम के अंदर भी भयंकर कॉम्पीटिशन है।
खासकर प्लेसमेंट के मामले में। ‘डे जीरो’ पर वो कंपनियां आती हैं जिनमें हर कोई सिलेक्ट होना चाहता है। जिनका नाम-पैकेज सबसे ऊंचा। मैकिंजी उनमें से एक है। आईआईटी-आईआईएम पार करने के बाद, एक नौजवान नौकरी की दौड़ में भी दूसरे से आगे निकल गया। फिर समस्या क्या हो सकती है?
पढ़ाई में अव्वल आना एक बात है। और बाहर की दुनिया में होता है कुछ और। कंपनी में काम करते वक्त सिर्फ दिमाग नहीं, सोशल स्किल्स भी लगते हैं। अकेले आप कुछ नहीं कर सकते, लोगों को साथ लेकर चलना पड़ता है। कुछ लोग काम बड़ी सिंसिरिएटी से करते हैं लेकिन क्रेडिट किसी और को मिल जाता है।
ऐसा भी होता है कि जो बंदा पढ़ाई में अव्वल था, प्रैक्टिकल लाइफ में उतनी सफलता नहीं पाता। जिंदगी भर टॉप आने वाला जब फेल्योर का सामना करता है, तो एकदम हिल जाता है। क्योंकि आज तक ये एहसास हुआ नहीं। अपने ऊपर गुस्सा भी आता है, और शर्मिंदगी भी।
ऐसे में आपको चाहिए एक सच्चा दोस्त, जिसके साथ अपना दुख-दर्द बांट सकते हैं। बिना हिचकिचाहट, बिना झूठ-फरेब। हर कोई समझता है कि मेरे जैसा दुखी कोई नहीं। एक बार किसी से दिल खोल कर बात करके तो देखो। वो भी अपनी राम कहानी सुना देंगे। जिसके पास पैसा भरपूर है, घर में शांति नहीं।
जहां परिवार मिल-जुल कर रहता है वहां सेहत नहीं। जिसका शरीर ए-वन, उसको रुपए की किल्लत। किसी की जिंदगी में एक ही समय पर सारे सुख उपलब्ध होना नामुमकिन। कोई तो संघर्ष आपको करना होगा, तो फिर उससे आंख मिलाकर क्यों ना कहें- ‘मुझे मंजूर है’।
अगर कोई फेल होता है तो उस इंसान को थप्पड़ मिलता है। पर मैं सोचती हूं, अच्छा हुआ। दो-चार बार हारना भी जरूरी है। कैरेक्टर कैसे बनता है? इन्हीं हालात में। ‘ट्वेल्थ फेल’ अगर ‘ट्वेल्थ पास’ होती तो पिक्चर में वो दम नहीं होता, दर्शकों से वो प्यार नहीं मिलता।
लेकिन अपने जीवन की पटकथा में हम चाहते हैं सीधी लाइन। केजी से पीजी, अच्छी नौकरी, सुंदर छोकरा/छोकरी। लाइफ बस ‘सेट’ हो जाए। क्या आपने ईसीजी मशीन की रीडिंग देखी है? दिल की धड़कन ऊपर-नीचे सरकती है। सीधी लाइन जिस दिन हो गई, शरीर से आत्मा मुक्त हुई। तो अपनी लाइफलाइन के उतार-चढ़ाव से ना डरिए।
छोटी-छोटी खुशियों से जीवन भरिए। कुछ दिनों में आम आने वाले हैं। आप कितने और किसके साथ खाने वाले हैं? जब मन दुखी या उदास हो, एक डायरी अपने पास हो। दोस्त समझ कर अपना दर्द शेयर कर डालो। अपना बोझ कुछ हल्का पा लो। हां, अगर उदासी का कोहरा छा गया है, तो इलाज का समय आ गया है। आप ‘पागल’ हैं, वो बात नहीं। मनोवैज्ञानिक दिखा सकता है राह सही।
डिप्रेशन नई महामारी है। काश कोई वैक्सीन ले पाते, आत्महत्या के केस थम जाते। करें हम एक दूसरे का ख्याल, तो किसी का ना हो ये हाल। आंसू आते हैं तो बहने दो, टेंशन अंदर ना रहने दो।