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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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असली लीडर वो होता है जो अपने कैलिबर के दस और लीडर खड़े करे

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शरद पवार आजकल काफी गुस्से में हैं। कहते हैं कि मेरे भतीजे ने षड्यंत्र रचा। मुझे धोखा दिया। इत्यादि इत्यादि। वैसे सियासत के मामले में ऐसा अक्सर होता है। खुद शरद पवार ने 1978 में कांग्रेस पार्टी के साथ कुछ ऐसा ही किया था। मगर अपनी पीठ में जब छुरी लगती है, तभी तो चुभती है।

37 साल की उम्र में वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तब बने, और अगले 45 साल तक दबदबा बना रहा। इस बात पर क्वीन एलिजाबेथ याद आती हैं, जिन्होंने ब्रिटेन का ताज पूरे सत्तर साल पहना। उनका देहांत हुआ और तब जाकर प्रिंस चार्ल्स का राज तिलक हुआ। तब तक वो 73 साल के हो चुके थे।

अगर चार्ल्स भी अपनी मां की तरह लंबी उम्र पाते हैं, तो बेचारे प्रिंस विलियम भी पूरी तरह गंजे हो जाएंगे, गद्दी पर बैठने से पहले। तो काफी ज्यादा सहनशीलता की जरूरत पड़ेगी। जो शायद अजित पवार में नहीं थी। वो खुद 63 साल के हो चुके हैं, कब तक इंतजार करेंगे?

परिवार में भी अक्सर होता है, खासकर बिजनेस में। तीन पुश्तों से जो व्यापार चला आ रहा है, उसमें जब ‘यंग ब्लड’ घुसना चाहता है, उसे पनपने का मौका नहीं मिलता। बच्चा एमबीए करके आया है, उस ज्ञान का प्रैक्टिकल एप्लिकेशन आप करना नहीं चाहते।

आपका मानना है, अभी वो बच्चा है, कच्चा है। या फिर मन ही मन डर है कि वो आपसे तेज है। अगर उसे कंपनी की लगाम दे दी तो थोड़े दिनों बाद आपकी तो पहुंच ही नहीं रहेगी। नहीं, नहीं, आप कहेंगे, ऐसा कतई नहीं है। लेकिन जिस कुर्सी की आदत हो गई है, उसे छोड़ना आसान नहीं। घर में सास और बहू के बीच झगड़े की भी तो यही वजह है। सास चाहती हैं कि छोटे-बड़े फैसले वहीं करें। आजकल की लड़कियों की भी अपनी सोच है। वो क्यों हर बात मानेंगी?

दरअसल हमें अच्छा लगता है जब कोई मेरी सुन रहा है। मेरे हर आदेश का पालन कर रहा है। हमें ‘पावर’ की फीलिंग महसूस होती है। लेकिन क्या वो मन से आपकी बात मान रहा है? या उनके पास कोई चारा नहीं। जैसे कि ऑफिस में आप बॉस हैं।

अगले को नौकरी की सख्त जरूरत है, कहे तो क्या कहे। लेकिन मन ही मन आपको गालियां दे रहा है। सोचिए, जब आपको किसी सनकी सीनियर से आदेश मिलते थे, कैसा लगता था? शायद भूल गए लेकिन तब सोचा था, जब मैं कुर्सी पर बैठूंगा, ऐसा कभी नहीं करूंगा। वैसी सरकारी दफ्तर और प्राइवेट सेक्टर में कम से कम रिटायरमेंट की फिक्स्ड एज होती है। राजनीति में तो वो भी नहीं।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन अस्सी साल के हैं। मगर जोश देखिए, अगले साल फिर चुनाव लड़ रहे हैं। 82 साल के शरद पवार कह रहे हैं, मैं अपनी पार्टी दोबारा खड़ी करूंगा। शायद उन्होंने कुछ स्पेशल च्यवनप्राश का सेवन किया है, जो आम आदमी को उपलब्ध नहीं!

पुराने जमाने में हमारे देश के राजा-रानी भी गद्दी त्यागकर भौतिक सुख की दुनिया छोड़ देते थे। अक्सर वो वन की तरफ निकल पड़ते थे और इसे हम वानप्रस्थ आश्रम के नाम से जानते थे। आज स्थिति ये है कि ना तो वन बचे हैं, ना कोई सुख त्यागने की इच्छा। नेताजी जिंदाबाद!

नई पीढ़ी, नई सोच, नए विचार कैसे पनपेंगे राजनीति में? पचास की उम्र तक तो वो ‘यूथ लीडर’ कहलाते हैं। वैसे असली लीडर वो होता है जो अपने कैलिबर के दस और लीडर खड़े करे। विज्ञान की दुनिया में डॉ. होमी भाभा और डॉ. विक्रम साराभाई दो ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने ऐसा करके दिखाया।

दोनों की आकस्मिक मौत से देश को धक्का लगा। मगर उनकी स्थापित संस्थाओं का काम फूलता-फलता गया। क्योंकि उन्होंने अपने साथ काम करने वालों को शुरू से सशक्त किया, देश के हित में काम करने को प्रेरित किया। इसे कहते हैं, ‘लीविंग ए लेगेसी..’ कुर्सी का मोह छूटेगा, तब ये भ्रम टूटेगा मन की शक्ति जोड़िए, माया से मुंह मोड़िए।

 

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