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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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अब ‘प्लेसमेंट भव’, ‘प्रमोशन भव’ जैसे आशीर्वाद की जरूरत

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वैसे तो हमारा राष्ट्रगान जब भी सुनती हूं, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मगर विदेश में जब बजता है, तो और भी अच्छा लगता है। जैसे कि ओलिम्पिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाला खिलाड़ी जब पोडियम पर होता है, उसका राष्ट्रगान बजाया जाता cipf-es.org है। शब्द नहीं, सिर्फ वाद्य संगीत। लेकिन हाल ही में अमेरिका की गायिका मैरी मिलबेन ने बाकायदा ‘जन गण मन’ गाया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में।

एक्सेंट थोड़ा अलग था, मगर शब्द सही और काफी भावनात्मक तरीके से। खैर, असली न्यूज़ बनी गाने के बाद, जब गायिका ने मोदी जी के पैर छुए। वहां उपस्थित सब देसी अचंभित! भाई, आजकल नई जेनरेशन तो बड़ों के पैर घर में छूने से मना कर देती है। और विदेशी महिला सबके सामने स्टेज पर चरणस्पर्श कर रही है? ये तो उल्टी गंगा बह रही है। सोचने की बात ये है : जबसे हल्दी-दूध ‘टरमरिक लाते’ के नाम से विदेश में चल पड़ा, हम भी पीने लगे। शायद पैर छूना भी ट्रेंडिंग और कूल हो जाएगा!

खैर, टिप्पणी देने वाले तो बहुत और तीखे टॉपिक की तलाश में थे। हमेशा की तरह सोशल मीडिया पर इस टॉपिक को लेकर भी जनता पांडव और कौरव गुट में बंट गई। एक तरफ का कहना था सब मोदी जी का कमाल है- देखो हमारी संस्कृति को कितना मान-सम्मान मिल रहा है। दूसरी ओर ऐसे लोग हैं, जो पैर छूने को दकियानूसी, रूढ़ीवादी प्रथा मानते हैं। क्यों करें भाई, इसकी क्या तुक है। हमें बिल्कुल पसंद नहीं। वैसे इनमें से कुछ ऐसे लोग हैं जो हर प्रथा में कोई न कोई खोट जरूर निकालते हैं।

क्या सही, क्या गलत, ये आपकी सोच है। भारतीय संस्कृति की खासियत है कि हर कोई अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार अपना रास्ता चुन सकता है। मुझे इस प्रथा से कोई प्रॉब्लम नहीं। बचपन से ही हम चाचा-चाची, बुआ-फूफा के पैर छूते थे। उनका आशीर्वाद मिलता था।

इसलिए शादी के बाद भी मुझे पैर छूने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी। मेरी सास की पांच बहनें थीं, तो ये टेक्नीक काफी काम आई। वैसे जरा-सा झुक जाओ, घुटनों तक हाथ पहुंचे, उतने में ही वो कहतीं, ‘बस, बस पुत्तर’। और हम गले मिल जाते। लेकिन पढ़ी-लिखी बहू का पैरी पौना उन्हें अच्छा तो लगता था।

अब एक नई समस्या आन पड़ी। पचास-पचपन की उम्र वाला कहता है, कोई मेरे पैर छूता है, तो शर्म आती है। क्या मैं इतना बुड्‌ढा हो गया हूं? वैसे आपकी दीदी-भैया वाली उम्र तो गई। तो फिर क्यों नहीं आप इस सम्मान को स्वीकारते हैं। बस आशीर्वाद सोच-समझकर दीजिए।

रामानंद सागर के सीरियल में ‘आयुष्मान भव’ बड़ा अच्छा लगता है। मगर आज सिर्फ लंबी आयु काफी नहीं। इसलिए ‘प्लेसमेंट भव, ‘प्रमोशन भव’ और ‘बीएमडब्ल्यू भव’ जैसे नए अंदाज से भी ब्लेसिंग्स दे सकते हैं। और हां, महंगाई के जमाने में दो सौ से कम न दीजिएगा। (इज्जत का सवाल है)

शायद पढ़ने वालों में कोई ऐसा हो जो आगे चलकर मेरा दामाद बने। तो इस अंजान शख्स के लिए एक संदेश : अगर श्रद्धा से तुम पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहो, तो खुशी होगी। अगर ये तुम्हारे उसूलों के खिलाफ है तो मत करना। पर जितना प्यार मैं दूंगी, उतना आदर तुम देना, ओके?

आजकल यूथ का जमाना है, नौकरी से निकालने का भी एक बहाना है। टेक्नोलॉजी की रफ्तार इतनी तेज है, ‘यू आर ऑब्सोलीट’ हमें खेद है। हम बड़ों को आप छोटे आशीर्वाद देते हैं, इंटरनेट के जमाने में टेलीग्राम न बनें। नई चीजों से मुंह न मोड़ें, उन्हें अपनाएं, जीवन में जोड़ें। मिल-जुलकर रहने में फायदा है।

जीवन का यही कायदा है। पर अब बच्चे दूर रहते हैं, इसी को प्रोग्रेस कहते हैं। पैसा जो कमाना है, वीडियो कॉल का जमाना है। बस, पैरी पौना का इमोजी बन जाए, वाट्सएप पर आशीर्वाद आए। कैश देना मना है, यूपीआई किस लिए बना है!
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

 

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