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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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जाने के बाद कोई आपको याद करेगा? हां, अगर आपने उनसे अच्छा व्यवहार किया हो

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हाल ही में एक जानी-मानी शख्सियत से मेरी मुलाकात हुई। अपने लम्बे कॅरियर में उन्होंने ढेर सारी उपलब्धियां पाईं। दौलत भी कमाई, और नाम भी। देश के बड़े उद्योगपतियों में उनकी गिनती है। अब रिटायर हो गए हैं, सो अपनी आत्मकथा लिखवाना चाहते हैं। इसी सिलसिले में मुझसे मिलना चाहते थे।

आलीशान बंगले के विशाल बोर्डरूम के अंदर मैंने कदम रखा, नमस्ते की। अगले आधे घंटे तक वो अपने बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बात करते गए। पहले तो ये कि वो कितने बड़े मंत्रियों के साथ उठते-बैठते हैं, जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं। और अब चूंकि रोज ऑफिस नहीं जाते तो कितना समय दान-पुण्य के काम में लगाते हैं।

मेरे मन में विचार आया, चैरिटी का काम करना अच्छा है, मगर सबको बताना क्या जरूरी है? अगर सच्चे दिल से आप किसी की मदद कर रहे हैं तो वही काफी होना चाहिए। खैर, हर तरह के लोग हैं इस दुनिया में। मैं कौन हूं उन्हें जज करने वाली। किसी का तो भला हो रहा है।

फिर पता चला कि वो रिटायर तो हो चुके हैं, लेकिन अब भी उन्हें अपनी कम्पनी की चिंता है। इसलिए वो अपने जैसे नई पीढ़ी के लीडर बनाने के कार्य में अब भी शामिल हैं। अगले दस साल की तो प्लानिंग हो चुकी है, मगर बीस साल बाद क्या होगा? ये सवाल उन्हें खाए जा रहा है। अपनी हेल्थ से ज्यादा उन्हें इस बात की टेंशन है।

भाई, होगा क्या? बंदा इस दुनिया में आता है और एक दिन चला जाता है। चाहे वो कोई भी हो। दुनिया चलती रहती है, बदलती रहती है। द्वारका नष्ट हो गया, समुद्र में डूब गया, तो एक कम्पनी क्या ही चीज है? जैसे शरीर दुर्बल होकर आखिर में गुजर जाता है, वैसे ही किसी संस्था का समय भी एक दिन समाप्त हो जाता है।

अगर सब को एक दिन जाना ही है, तो उसकी प्लानिंग हम क्यों नहीं करते? सबसे जरूरी है वसीयत बनाना, जिसके ना होने से काफी क्लेश होता है। लेकिन हम इसलिए कतराते हैं कि ‘वो दिन दूर है।’

भारतीय संस्कृति में त्रिमूर्ति हैं- ब्रह्मा-विष्णु-महेश। ब्रह्मा सृष्टि रचते हैं, विष्णु उसे चलाते हैं और शिवजी उसका नाश करते हैं। यही जीवन का चक्र है और युगों का भी। लेकिन मनुष्य ये सच स्वीकार करने को तैयार नहीं है। जिस दिन सांस रुक जाती है, भ्रम अपने आप ही टूट जाता है।

जाने के बाद कोई आपको याद करेगा? हां, अगर आपने उनसे अच्छा व्यवहार किया हो। मेरे मौसेरे भाई अशोक कोविड की दूसरी लहर में गुजर गए। उनका मुस्कराता हुआ चेहरा कई बार मन के परदे पर आता है। काश, कुछ और समय उनके साथ बिताया होता। वो कोई बड़े आदमी नहीं थे, लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा था, और साफ भी।

वैसे अगर सब को एक दिन जाना ही है, तो उसकी प्लानिंग हम क्यों नहीं करते? जैसे कि बैंक के कागजात में अपने परिवारजनों का नॉमिनेशन, बीमा और बचत का विवरण, इंटरनेट बैंकिंग के पासवर्ड इत्यादि। कहीं तो लिखकर रखना चाहिए। नहीं तो आपके पीछे, बेटा-बेटी दस बार इधर-उधर चक्कर काटेंगे।

सबसे जरूरी है वसीयत बनाना, जिसके ना होने से काफी कॉम्प्लिकेशन होता है, और क्लेश भी। अब तो ये काम ऑनलाइन भी हो जाता है, लेकिन हम शायद इसलिए कतराते हैं कि ‘वो दिन दूर है।’

क्यों सोचें उसके बारे में। जब कि अगला पल भी होगा या नहीं, हम ये तक जानते नहीं।

एक-एक सांस अनमोल है, तो फिर क्यों ना कुछ मीठा बोल लें? आज सब्जी अच्छी बनी है तो बहू की प्रशंसा कर दें। बच्चे को गोदी में लेकर सर पर हाथ फेर लें। ऑफिस में जूनियर को डांट के बजाय प्यार से समझाएं। दिल खोलकर, गला फाड़कर, नहाते समय गाएं। सर्दी की धूप का आनंद लीजिए। पुराने दोस्त का नम्बर ढूंढकर उसे वॉट्सएप्प कीजिए।

रही उद्योगपति की बात, शायद वो इतिहास के पन्नों में आना चाहते हैं। मगर दो सौ साल बाद दुनिया का रूप हम नहीं जानते हैं। क्या हम होंगे आधे मनुष्य और आधे मशीन? या फिर मंगल ग्रह पर बजा रहे होंगे अपनी बीन? जो पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, वो फिर धरती पर आने की आस रखते हैं।

पता नहीं, ऐसा होता है या नहीं। इसलिए इसी जनम को जीना है सही। अहंकार अंदर से खोखला कर देता है। विनम्रता से पेश आने वाला ही नेता है।

 

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