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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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धन कमाने में कोई शर्म नहीं, बस बड़ा दिल रखिए

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कुछ साल पहले एक नौजवान अपने होने वाले सास-ससुर से पहली बार मिलने बेंगलुरू पहुंचे। आप कल्पना कर सकते हैं, लड़के के लिए और ससुराल पक्ष के लिए, कितना बड़ा परीक्षण था। साधारणतया, लड़की वाले काफी ज्यादा तैयारी और खातिरदारी में जुट जाते हैं। लेकिन ये कहानी कुछ अलग है। सास एक जानी-मानी लेखिका और समाजसेविका हैं।

देश के अमीरों में उनकी गिनती है। वो चाहतीं तो बड़े से बड़े 5 स्टार होटल में दामाद को दावत पर बुला सकती थीं। मगर वो उन्हें लेकर गईं अक्षय पात्र नामक एक संस्था के रसोईघर में। वहां रोज लाखों बच्चों का दोपहर का भोजन यानी मिड-डे मील बनता है। शायद उन्होंने खाया होगा गरमा-गरम साम्भर-चावल, या कर्नाटक का प्रसिद्ध बीसी बेले बाठ। ऐसा खाना जो पौष्टिक है, स्वादिष्ट भी।

जिसमें सेवाभाव का रस मिश्रित है। ये अद्भुत सास थीं सुधा मूर्ति और दामाद ऋषि सुनक, जो हाल ही में यूके के प्रधानमंत्री बने हैं। ये किस्सा खुद सुधा जी ने मुझे सुनाया था, जब मैं अक्षय पात्र संस्था के बारे में रिसर्च कर रही थी। गॉड्स ओन किचन नाम की मेरी किताब में ये वाकिया छापा भी है। आज हर तरफ ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता के चर्चे हैं।

खासकर उनकी धन-सम्पत्ति पर लोग टिप्पणी दे रहे हैं। तो मेरा मानना है कि धनी होना कोई बुरी बात नहीं। देखना ये है कि आपने धन कैसे कमाया है। छल-कपट से, या सच्ची मेहनत से? भारत में सब जानते हैं कि इन्फोसिस एक ऐसी कम्पनी है, जिसके संस्थापक सिर्फ पैसों के पीछे पागल नहीं थे। आम तौर पर पूंजीवादी सिर्फ अपनी पूंजी बढ़ाने का उद्देश्य रखते हैं। इन्फोसिस ने एक नया रास्ता दिखाया।

आज से पच्चीस साल पहले नारायणमूर्ति ने कहा था कि इन्फोसिस सन् 2000 के पहले दो हजार मिलियनेयर बनाएगा। उन्होंने सिर्फ इंजीनियर नहीं, क्लास सी, डी और ई के कर्मचारियों को भी कम्पनी के शेयर्स दिए। जब 1999 में इन्फोसिस न्यूयॉर्क के नेसडेक एक्सचेंज पर लिस्ट हुई तो सचमुच, वहां काम करने वाले ड्राइवर, पियून और प्लम्बर भी धनवान हो गए।

असल में जवानी में नारायणमूर्ति कम्युनिस्ट सोच की तरफ आकर्षित हो गए थे। लेकिन 1974 में एक ऐसी घटना हुई, जिससे वो हिल गए। उस वक्त वो यूरोप में सीमित बजट में यात्रा कर रहे थे। शहर घूमकर नारायणमूर्ति रेलवे स्टेशन की बेंच पर बिस्तर बिछाकर सो जाते थे। पुलिस भी मुस्कराकर अनदेखा कर देती थी, कोई रोकटोक नहीं।

तब यूरोप दो हिस्सों में बंटा हुआ था- एक तरफ वेस्टर्न यूरोप जो पूरी तरह स्वतंत्र था, और दूसरी तरफ कम्युनिस्ट यूरोप जो रूस के साथ जुड़ा हुआ था। कम्युनिस्ट यूरोप में यूगोस्लाविया नाम का एक देश था। वहां से नारायणमूर्ति ने बुल्गारिया के लिए ट्रेन पकड़ी और कम्पार्टमेंट में एक लड़की से वो फ्रेंच में कुछ बातें कर रहे थे।

शायद उसके साथ जो लड़का था, उसे ये पसंद नहीं आया। उसने पुलिस से अपनी भाषा में कुछ कहा और उन्होंने मूर्ति को जबरदस्ती ट्रेन से उठवाया। एक 8 बाय 8 के कमरे में पटक दिया। पांच दिन तक ठंडी फर्श पर नारायणमूर्ति बिना खाना, बिना पानी पड़े रहे। लगा, शायद मैं यहीं खत्म हो जाऊंगा। 120 घंटे बाद दरवाजा खुला। मालगाड़ी में चढ़ाकर पुलिस ने कहा, इस्ताम्बुल में पासपोर्ट मिलेगा।

कम्युनिज्म का नशा नारायणमूर्ति के दिमाग से उतर गया। उन्होंने अपनाया कम्पैशनेट कैपिटलिज्म यानी परोपकारी पूंजीवाद। एक उद्यमी बनकर लाखों लोगों को नौकरी दी, अपनी कम्पनी में हिस्सा दिया, सर उठाकर जीने का मौका दिया। और देश का गौरव भी बढ़ाया। अगर इस नजर से धन को हम देखें तो धन कमाने में कोई शर्म नहीं। बड़ा दिल रखिए।

आप विशाल कम्पनी के मालिक नहीं, फिर भी अपनी दुकान में, अपने घर में काम करने वालों के प्रति उदार हो सकते हैं। 500 रुपए आपके लिए एक पिज्जा के बराबर हैं, उनके लिए बच्चे के स्कूल की फीस। ना ही सब्जी वाले से दो-चार रुपए कम करवाकर आप अमीर हो जाएंगे।

दिवाली में आपने खूब मिठाई बांटी तो सिर्फ 1500 रुपए में एक बच्चे को पूरे साल पेटभर खाना भी खिलाइए। अक्षय पात्र की वेबसाइट द्वारा दान दें। दिल का दीप जलता रहे, संसार आपका फलता रहे।

अपनी दुकान में, घर में काम करने वालों के प्रति उदार हों। 500 रुपए आपके लिए एक पिज्जा है, उनके लिए बच्चे के स्कूल की फीस। ना ही सब्जी वाले से दो-चार रुपए कम करवाकर आप अमीर हो जाएंगे।

 

 

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