आंख खुलते ही, पांच ऐसे लोगों का स्मरण कीजिए, जो आपकी जिंदगी की खुशी बढ़ाते हैं
‘मन क्यूं बहका रे बहका, आधी रात को…’ इस सवाल का जवाब तो मेरे पास नहीं है। मगर मैं यह जरूर कहूंगी कि गाने के बोल कुछ अधूरे हैं। क्योंकि ज्यादातर लोगों का मन तो दिन-दहाड़े भी बहका रहता है। शरीर चाहे कहीं भी स्थित हो, मन अपने सैर-सपाटे पर निकल पड़ता है। ऑफिस की मीटिंग में घर के काम याद आते हैं (‘ओह, एसी ठीक करवाना है’)। घर में ऑफिस की कोई समस्या पर चिंतन चल रहा है।
माताजी ने लंच तैयार किया नहीं कि कल के खाने के बारे में सोच रही हैं (‘मेहमान आ रहे हैं ना’)। विद्यार्थी क्लास में बैठा है, पर खिड़की से बाहर झांक रहा है। भगवान बुद्ध ने मन की तुलना एक नशे में धुत्त बंदर से की है। इसे अंग्रेजी में मंकी माइंड कहते हैं। जैसे बंदर उछलता है, बिलखता है, बकबक करता है, उसी तरह बंदर जैसा मन है। इसे अपने वश में कैसे लाना है, इसी विषय पर प्रवचन होता है।
मगर उस वक्त भी बंदर मन चीखता रहता है- ये तो हो नहीं सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि मस्तिष्क की दो सेटिंग होती हैं। एक तो फोकस मोड- यानी कि किसी कार्य में लीन हो जाना। जब आप पूरे दिल से गाना गा रहे हों, सुंदर सूर्यास्त का आनंद ले रहे हों या किसी बच्चे को गोद में खिला रहे हों, सुकून का अहसास होता है। इधर-उधर की बातों के जाल से निकलकर अब उस क्षण का सम्पूर्ण आनंद ले रहे हो। लेकिन ब्रेन की दूसरी सेटिंग है ऐंवई, यानी कि डिफॉल्ट सेटिंग।
इसमें हम 80-90% समय गंवा देते हैं। गुजरे हुए जमाने में मनुष्य का जीवन इतना व्यवस्थित नहीं था, कभी भी विपदा आ सकती थी। इसलिए ब्रेन सतर्क रहता था। अगर शेर पेड़ के पीछे से निकला तो हमें या तो भिड़ना है, या भागना है। इसे कहते हैं, फाइट ऑर फ्लाइट मोड। आज ऐसे खतरे कम हैं, लेकिन मन फिर भी सतर्क है। और इस वजह से जीवन नरक है। पैसा बैंक में होते हुए मन चीखता है- और चाहिए। रेट-रेस में दौड़ते रहें, नहीं तो पीछे रह जाइए।
दिल में भय है कि आज सब ठीक है पर कल किसने देखा है। इस चक्कर में वर्तमान पल को हमने फेंका है। तीस की उमर वालों को एंटी-एजिंग क्रीम बेचना एक धंधा है। तुम जो हो, जैसे हो, सब गंदा है। बदसूरत, महंगे डिजाइनर बैग्स कंधे से झुलाओगे, तभी तो सोसायटी में इज्जत पाओगे। दो-चार दिन बुखार आया तो आपने गूगल सर्च मारी। पचास बड़ी बीमारियां हो सकती हैं, अब तो नींद भी नहीं आ रही।
अमेरिका में मायो क्लिनिक के डॉ. अमित सूद भटकते हुए मन पर पिछले बीस साल से रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने एक नुस्खा बताया है, जो कोई भी आजमा सकता है। सुबह उठते ही, आंख खुलते ही, पांच ऐसे लोगों का स्मरण कीजिए, जो आपकी जिंदगी की खुशी बढ़ाते हैं। कल्पना कीजिए वो व्यक्ति आपके सामने खड़ा है और उसकी आंखों से आंखें मिलाइए।
कोई ऐसी बात याद कीजिए- छोटी या बड़ी- जिसके लिए आप उस व्यक्ति को थैंक यू कहना चाहते हैं। तहेदिल से उस व्यक्ति को आभार प्रकट कीजिए। आई एम ग्रेटफुल दैट… आपका साथ है, आपका सपोर्ट है, इत्यादि। चाहे मन ही मन कहा, लेकिन पॉजिटिव वाइब उन तक पहुंचेगी। दिन भर आपको भी एक हल्कापन महसूस होगा।
पांच की गिनती में अपने गुजरे हुए माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी को भी आप शामिल कर सकते हैं। क्योंकि उनका प्यार तो आपके पास आज भी है। आखिर अपना बचपन याद कीजिए। आठ साल की उम्र में आपका चेहरा कैसा था, हेयरस्टाइल कैसी थी। उस मासूम बच्चे को बांहों में लीजिए, वर्चुअल हग दीजिए। वो बच्चा आज भी प्यार का भूखा है। ये एक्सरसाइज आप रोज कीजिए, 21 दिन कीजिए।
फिर वो एक आदत बन जाएगी। 21 दिन के बाद रात को सोने से पहले आप फिर स्मरण कीजिए कि आज क्या-क्या अच्छा हुआ। पति ने बढ़िया मसाला चाय पिलाई, सड़क पर आज ट्रैफिक नहीं मिला, बालकनी में फूल खिला। हर बात कितनी न्यारी है, कितनी प्यारी है। अंधेरे से उजाले में आओ। भौतिक और अलौकिक सुख पाओ।
कोई ऐसी बात याद कीजिए, जिसके लिए आप किसी को शुक्रिया कहना चाहते हैं। तहेदिल से आभार प्रकट कीजिए। चाहे मन ही मन कहा, पॉजिटिव वाइब उन तक पहुंचेगी। आपको भी हल्कापन महसूस होगा।