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भारत की हर भाषा का पूरी गति और जोश से हो विस्तार

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17.11.2021

साल दर साल, समाचार पत्रों में एक खबर जरूर छपती है कि ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने हिन्दी भाषा के कौन-कौन से शब्दों को शामिल किया गया है। सन 2020 में 26 देसी शब्दों को विदेशी शब्दकोष में नागरिकता मिली। इसमें हैं डब्बा, हड़ताल, शादी और आधार। मगर इन शब्दों को कैसे चुना गया, इसके पीछे सोच क्या है? कहानी शुरू होती है 1857 में। लंदन में फिलोलॉजिकल सोसायटी नाम की संस्था ने एक संपूर्ण, परिपूर्ण अंग्रेजी शब्दकोष की कल्पना की।

योजना इतनी भारी-भरकम थी कि 20 साल बीत गए, पर काम खत्म होने का नाम नहीं। आखिर 1879 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस को प्रोजेक्ट सौंपा गया। किसी प्रोजेक्ट में प्रोजेक्ट मैनेजर की भूमिका अहम होती है। और कुछ हटकर करना हो तो कुछ हटके सोचना पड़ेगा। काफी वाद-विवाद के बाद, ऑक्सफोर्ड प्रेस ने ऐसा संपादक चुना, जिनके पास फॉर्मल डिग्री नहीं थी। मगर भाषा से इतना प्रेम था, जितना आम आदमी को आइने में अपनी शक्ल से होता है। दस साल, 7000 पन्ने और 4 वॉल्यूम के शब्दकोश का ठेका कोई जुनूनी इंसान ही ले सकता है।

उस इंसान का नाम था जेम्स मरे। विद्वानों ने अलग-अलग राय दी। कुछ ने कहा कि अंग्रेजी की ‘पवित्रता’ कायम रखना है, लेकिन औरों ने माना कि भाषा जीता-जागता प्राणी है। जिंदगी जब एक खिलखिलाती नदी की तरह बहती है, तो भाषा में भी वही लचक होनी चाहिए। लोग अपने मन से और अपने ढंग से शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। तो हर जगह से, हर शब्द की सूची, चार लोग एक दफ्तर में बैठकर कैसे बनाएंगे? मुरे ने समस्या का समाधान यूं निकाला।

दुनियाभर में जहां भी अंग्रेजी बोली जाती है, वहां एक अपील फैलाई कि आम जनता एक कागज पर अपने पसंद का शब्द लिखकर भेजे। शब्द को वाक्य में भी इस्तेमाल करके बताएं, ताकि संपादक उसका अर्थ बेहतर समझ सकें। किसी को ना कोई इनमा मिला, न पैसे। फिर भी हजारों पर्चियां मिलीं। पते की बात यह है कि जो काम मरे ने शुरू किया, वो आज भी जारी है। बस तरीका बदल गया है। जनता अब पर्चियों पर नहीं, ईमेल से सुझाव देती है। संपादक इंटरनेट की छानबीन से नए शब्द पहचानते हैं।

वैश्वीकरण के युग में अंग्रेजी शब्दकोष में अन्य भाषाओं के शब्द भी शामिल होते हैं। मन में सवाल उठा, हिंदी शब्दकोष का विस्तार कैसे होता है? कभी कोई खबर तो मैंने पढ़ी नहीं कि इस साल फलां-फलां नए शब्द जुड़े। फिर पता चला कि काम तो हो रहा है, एमएचआरडी के ‘केंद्रीय हिन्दी निदेशालय’ के तहत। लेकिन प्रचार व संचार, दोनों में कमी है। जिस भाषा को हिंदी कहते हैं, वो प्राचीन भी है, नवीन भी। संस्कृत से उपजी प्राकृत भाषा, फिर उसमें हुआ मिश्रण फारसी और अरबी का।

इसे जाना जाता था हिन्दुस्तानी के नाम से। जब देश आज़ाद हुआ तो राजभाषा के रूप में ‘मॉडर्न स्टैंडर्ड हिंदी’ अपनाई गई। जो देवनागरी लिपी में लिखी जाती है और जिसके अधिकांश शब्द संस्कृत मूल के हैं। चूंकि आज हमें संस्कृत का ज्ञान नहीं, कई शब्द विचित्र लगते हैं। अधिकृत शब्दकोष के अनुसार क्या आप ट्रेन को ‘लौहपथगामिनी’ कहते हैं? ऐसे बहुत-से शब्द हैं जो सुरीले तो हैं, मगर सरल व व्यावहारिक नहीं। फिर धीरे-धीरे हिंदी में इंग्लिश के मिश्रण से ‘हिंग्लिश’ प्रचलित हो रही है। यह अपने आप में बुरा नहीं।

मगर हिंदी भाषा इतनी मधुर है, यह मिठास फीकी न पड़े। वो भी हमारी लापरवाही से। सरकार काम कर रही है, मगर आम जनता को भी शामिल करना चाहिए। जो महान काम ऑक्सफोर्ड प्रेस ने अंग्रेजी के लिए 125 साल पहले किया, उसकी अति-आवश्यकता आज हिंदी भाषा को है। फ्रांस ने लारूस शब्दकोष में इस साल 170 नए शब्द जोड़े, जिसमें कई शब्द स्वास्थ्य और कोविड संबंधित हैं। भारत की हर भाषा में इसी गति और जोश से विस्तार होना चाहिए। नया विचार, नए शब्द। कोमल, सुंदर, सरल, उपलब्ध।

 

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