लगाव काम से हो पैसों से नहीं, क्योंकि कर्म के खाते में जमा ही असली धन है
14.04.2021
पूर्वी यूरोप के हंगरी में एक दुकानदार की बेटी का सपना था कि मैं विज्ञान की दुनिया में कुछ हासिल करूं। उसने पीएचडी की, लेकिन 1985 में कैटलिन करिको जिस लैब में काम करती थी, वो फंड्स की कमी से बंद हो गई। तब उन्होंने पति और दो साल की बच्ची के साथ अमेरिका में बसने का निर्णय लिया। उनका अनुमान था कि अमेरिका में उन्हें मनचाही रिसर्च में खास दिक्कत नहीं होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस गुत्थी को कैटलिन सुलझाना चाहती थीं, उसमें किसी को दिलचस्पी नहीं थी।
वो प्रपोजल लिखतीं, मगर बार-बार रिजेक्ट हो जाता था। कैटलिन रिसर्च कर रही थी mRNA के ऊपर। संक्षिप्त में, एमआरएनए हमारे जीन्स के अंदर वो स्क्रिप्ट है, जो DNA को प्रभावित करती है। डॉ. करिको का मानना था कि एमआरएनए को समझकर हम उनका अनोखा इस्तेमाल कर सकते हैं। उनके द्वारा शरीर की हर सेल को निर्देश दिया जा सकता है, ताकि ये सेल्स खुद-ब-खुद अपना इलाज कर सकें।
एक तो विचार नया था, दूसरा उसको साबित करना मुश्किल। लेकिन डॉ. करिको का दृढ़ विश्वास था कि इस टेक्नोलॉजी का उपयोग हर तरह की बीमारी में हो सकता है। चाहे दिल का मरीज़ हो या कैंसर का। इसलिए उनके प्रयोग बार-बार फेल होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हां, उन्हें एक सच्चे साथी वैज्ञानिक की तलाश जरूर थी। इनसे मुलाकात हुई जेरॉक्स मशीन के पास, इधर-उधर की बातचीत में। डॉ. वाईसमैन ने शेयर किया कि वो एचआईवी वैक्सीन बनाना चाहते हैं। डॉ. करिको ने पूरे विश्वास से कहा कि मैं एमआरएनए से कुछ भी करवा सकती हूं। खैर, इतना आसान था नहीं।
जब चूहों में एमआरएनए इंजेक्ट किया गया तो वो बुरी तरह से बीमार हो गए। इम्यून सिस्टम ने ‘घुसपैठिए’ पर हमला जो बोल दिया। ऐसा क्यों होता है, ये समझने में 7-8 साल लग गए। आखिर 2005 में मेहनत का फल मिला। एक ऐसा मॉलीक्यूल mRNA में जोड़ा गया, जिससे रिएक्शन बंद हो गई। दोनों ने मिलकर एक छोटी सी कंपनी स्थापित की, पर पैसों की तंगी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाई। 2011 में मॉडर्ना नाम की एक बायोटैक कंपनी ने डॉ. करिको से पेटेंट लायसेंस करना चाहा।
मगर उनकी यूनिवर्सिटी ने वो एक्सक्लूसिव पेटेंट पहले ही बेच दिया था। जले पर नमक छिड़कने वाली बात तो ये कि डॉ. करिको को प्रमोशन भी नहीं मिला। उन्होंने फिर एक बड़ा निर्णय लिया, जर्मनी की स्टार्टअप बायोएनटेक में काम करने का। जनवरी 2020 में वुहान में जन्मे कोरोनावायरस का जेनेटिक सीक्वेंस रिलीज हुआ तो बायोएनटेक वो पहली कंपनी थी, जिसने चंद घंटों में एक वैक्सीन तैयारी की और उसका एलान किया।
सब आश्चर्यचकित हुए- ये कैसे हो सकता है? शायद यही एक ऐसा पल था, जिसमें डॉ. करिको ने लंबी सांस लेकर कहा होगा, ये दिन तो आना ही था। यही वैक्सीन आज मल्टीनेशनल फाइजर लाखों की तादाद में बना रहा है। और उन्हें छप्पर फाड़ के प्रॉफिट भी मिल रहा है। जिस शख्स ने सपने को साकार करने में पूरा जी-जान लगा दिया, उसे कोई आर्थिक लाभ नहीं हो रहा। लेकिन वो फिर भी संतुष्ट है।
डॉ. करिको के पति का कहना है कि उन्हें पैसों का मोह कभी नहीं था, लगाव था तो सिर्फ अपने काम से। ऐसे इंसान के लिए लैब एक मंदिर की तरह है, जहां तपस्या जारी है। और ऐसे पवित्र स्थान पर क्या महसूस होगा? सत्त, चित्त, आनंद। डॉ. करिको उन महान हस्तियों में से हैं जिन्हें ज्ञान है कि असली दौलत रुपए-पैसे-डॉलर में नहीं। वो तो हमें एक न एक दिन छोड़कर जाना है।
असली धन वो है जो हमारे कार्मिक अकाउंट में जमा किया गया हो। अपने अच्छे विचार और अच्छे कार्य के द्वारा। जिन लोगों ने किसी और के काम का फायदा उठाकर, अपना बैंक अकाउंट भारी किया, उन्हें शायद पता नहीं कि मूल रूप से वे कितने गरीब हैं। आपके आसपास, कौन धनी और कौन दरिद्र? आंखें खोलिए और देखिए, एक नई नजर से।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)