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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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विद्या की ओर आकर्षित होने से इंसान का रोम-रोम प्रकाशित होता है, यह नौसिखिया बनकर कुछ सीखने का सबसे अच्छा समय है

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31.03.2021

कुछ साल पहले स्टैनफोर्ड प्रोफेसर पीटर नोरविग के मन में एक ख्याल आया कि जो सब्जेक्ट मैं सिखा रहा हूं, वो तो मॉर्डन है, लेकिन जिस तरह से मैं क्लास में खड़े होकर लेक्चर दे रहा हूं, वो सदियों पुराना है। उन्होंने अपने को-फैकल्टी सेबस्टियन थ्रन से इस बारे में विचार-विमर्श किया। दोनों ने ठान ली कि हमें कुछ बदलना चाहिए।

जुलाई 2011 में उन्होंने सूचना दी कि वो एक ऑनलाइन क्लास करेंगे, ‘इंट्रोडक्शन टू आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’, जिसमें कहीं से भी, कोई भी शामिल हो सकता है। आश्चर्य की बात कि 1,60,00 छात्रों ने कोर्स जॉइन किया। अब प्रोफेसर भी थोड़े हैरान कि सिखाएंगे कैसे। और फैसला लिया कि चाहे कितने भी विद्यार्थी हों, उन्हें वन-ऑन-वन ट्यूटोरिंग का एहसास होना चाहिए।

वीडियो उसी तरह शूट किए गए, जैसे कि शिक्षक किसी एक को समझा रहा हो। लंबे लेक्चर की बजाय उन्होंने बाइट-साइज यानी छोटे-छोटे सेगमेंट बनाए। हर कंसेप्ट को समझने के बाद विद्यार्थी को क्विज़ कम्प्लीट करना होगा जिसमें रट्‌टे वाले नहीं, एप्लीकेशन वाले सवाल होंगे। क्लास को जिसे सोते-सोते नहीं, सतर्क होकर अटेंड करना पड़ेगा।

अब एक टीजर हजारों स्टूडेंट के डाउट तो क्लियर कर नहीं सकता। इसलिए उन्होंने अपनाया ‘फिल्प लर्निंग मॉडल’, जिसमें विद्यार्थी एक-दूसरे की मदद कर सकें। यह हुआ डिस्कशन बोर्ड के माध्यम से, जिसके ऊपर शिक्षक नजर रखते थे, मगर ज्यादातर सवाल उनके हस्तक्षेप के बिना आपस में ही सुलझ गए।

दस हफ्ते का यह फ्री कोर्स जब खत्म हुआ तो पाया गया कि 1,60,000 विद्यार्थियों में से 20,000 ने सारे वीडियो देखकर, हर होमवर्क पूरा किया। उन्हें एक ‘सर्टिफिकेट ऑफ एकॉम्प्लिशमेंट’ दिया गया। कोर्स का फीडबैक देते हुए एक विद्यार्थी ने कहा कि अब मैं जहां भी देखता हूं, मुझे गेम थियोरी नजर आती है। मेरा सोचने का तरीका ही बदल गया है।

सबसे विचित्र बात यह थी कि इस कोर्स में हर तरह के विद्यार्थी शामिल हुए। एक स्टूडेंट ने कहा कि मैं अफगानिस्तान से अटेंड कर रहा हूं। बाहर बमबारी होती है, लेकिन मैं परवाह नहीं करता। दूसरी ओर, दो छोटे बच्चों की मां, जो घर की जिम्मेदारियों से जूझ रही थी, मगर उसने भी कोर्स को चुनौती समझकर स्वीकार किया।

इस शिक्षा प्रयोग की सफलता से प्रेरणा लेकर सेबस्टियन थ्रन ने स्टैनफोर्ड की नौकरी छोड़ दी और सन् 2012 में एक कंपनी स्थापित की। इन दस सालों में एजुटेक के क्षेत्र में काफी गर्मा-गर्मी हो गई है। आज कई प्लेटफॉर्म पर अनगिनत कोर्स उपलब्ध हैं। ज्ञान की तो जैसे गंगा बह रही है, जिसमें आप जब चाहें डुबकी लगा सकते हैं।

मेरे पास कोई PHD नहीं, पर अपने अनुभव के आधार पर मैंने भी लघुकथा लेखन का ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है। मुझे पता नहीं था कि जो चीज मैंने खुद-ब-खुद अभ्यास करके मास्टर की, वो मैं औरों को सिखा सकती हूं। उनके अंदर की प्रतिभा जगा सकती हूं और ऐसा करने से मुझे कितना आनंद और सुकून मिलेगा।

इसे कहिए कोविड का कमाल। न हम घर में कैद होते, न हम जूम देवता के रोज दर्शन करते। आम जिंदगी में लोगों की सोशल लाइफ ही इतनी विशाल होती है। अपने लिए, आत्म विकास के लिए, हमें फुरसत ही नहीं मिलती। अब वो सुनहरा मौका है, उसका फायदा उठाइए। किसी नई कला या कौशल की तरफ कदम बढ़ाइए।

जिस तरह आप बच्चों की पीछे पड़े रहते हैं, कि कुछ सीखो, आप भी नौसिखिया बन जाइए। सर्टिफिकेट या डिग्री के लिए नहीं, एक रोमांचक सफर पर निकल पड़िए। क्या पता आगे क्या रास्ता निकलता हो। कोर्स मुफ्त हो या पेड, फायदा आपको उतना ही मिलेगा जितनी आपमें लगन है। आखिर में पते की बात- जब इंसान विद्या की ओर आकर्षित होता है, रोम-रोम प्रकाशित होता है। तो आप क्यों अंधेरे की आड़ में खड़े हैं?

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