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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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अंदर मौजूद ‘इनर चाइल्ड’ का दुख-दर्द साझा करें

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सरकारी स्कूल की चौथी क्लास में एक बच्चा दाखिल हुआ। मगर हर दूसरे दिन क्लास में लेट आता था। टीचर परेशान। इतनी डांट पड़ने के बाद भी बच्चे पर कोई असर नहीं! एक दिन टीचर ने ठान लिया कि उसके घर जाकर माता-पिता को बोलता हूं- कितने लापरवाह हैं! रजिस्टर से अता-पता निकालकर वो उसके कच्चे मकान तक पहुंचे। शाम के पांच बजे थे, दरवाजा लड़के ने खोला। ‘अपनी मां को बुलाओ’, टीचर गरजे। ‘वो नहीं हैं’, उसने जवाब दिया। ‘ठीक है, मैं इंतजार करता हूं’, ये कहकर टीचर बैठ गए।

पीछे से खिलखिलाती आवाज आई, वो लड़के की छोटी बहन थी। ‘मास्टरजी, मां तो अब इस दुनिया में नहीं हैं।’ टीचर हक्के-बक्के रह गए। पता चला कि बच्चों की मां दो साल पहले गुजर गईंं, पिता सुबह-शाम दो नौकरी करके रोजी-रोटी कमा रहे थे। बहन को और खुद को तैयार करके, नाश्ता बनाकर लड़का स्कूल के लिए निकलता था।

उस दिन के बाद मास्टरजी ने लड़के की तरफ नजरिया बदल दिया। वो अब भी देर से आता, उसे डांट नहीं पड़ती। उल्टा मास्टरजी छोटी-छोटी बातों में उसकी प्रशंसा करने लगे। जैसे कि बेटा तुम्हारी हैंडराइटिंग अच्छी है, थोड़ी प्रैक्टिस करो तो और सुंदर लिख पाओगे। लड़का प्यार का भूखा था। थोड़ा बढ़ावा मिला, तो पढ़ाई में मन लगाना शुरू किया। साल के अंत में रिजल्ट आया, वो कक्षा में तीसरे स्थान पर था। मास्टरजी को अहसास हुआ कि ये बच्चा कुछ और दिन डांट खाता तो शायद फेल हो जाता या स्कूल छोड़ देता।

कहने का मतलब ये है कि जब हमारे सामने कोई व्यक्ति खड़ा है तो हम उसके बारे में अपने मन में पहले ही एक कहानी बना लेते हैं। किसी ने हमें ठीक तरह से हैलो नहीं बोला, हम सोचते हैं कि वो कितना घमंडी है। थोड़े पैसे क्या आ गए, अपने आपको मुझसे बड़ा समझने लगे।

कुछ लोग ऐसी सोच के हो सकते हैं। मगर ज्यादातर लोग जब आपसे ‘ठीक से बात नहीं करते’ तो हो सकता है कि वो शायद खुद परेशान हों। हो सकता है घर में कोई बीमार हो या फिर पैसों की कोई प्रॉब्लम। या फिर बस, आजकल काम का स्ट्रेस बहुत है। शायद मिलने-जुलने की इच्छा भी नहीं पर फंक्शन में नहीं आएंगे, तो आप बुरा मान जाओगे।

हम एक-दूसरे से पूछते जरूर हैं कि ‘हाऊ आर यू’, पर ये जानना नहीं चाहते। जवाब मिलता है, ‘सब ठीक’। जबकि कुछ ठीक नहीं। एक मुखौटा पहन लिया, दुनिया से सच्चाई छुपाने के लिए। मगर अफसोस, सामने वाला फिर भी नाराज। उन्होंने आपको दोषी मानकर जजमेंट पास कर दिया।

कड़वे शब्दों का असर बहुत बुरा पड़ता है, खासकर बच्चों पर। चाहे आप टीचर हों या पैरेंट, आपके कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। अगर बिना सोचे-समझे बच्चे को कुछ कह दिया और वो तीर की तरह उसके दिल में चुभ गया, तो जिंदगी भर वो शब्द उसके दिमाग में गूंजते रहेंगे। ‘तू गधा है, नालायक है’ अगर बच्चे के मासूम मन ने इसको मान लिया, तो ये उसके जीवन का सच होगा।

याद कीजिए, क्या बचपन में किसी ने आपको कुछ ऐसा कह दिया, जिसे आपने सच मान लिया? जिसकी वजह से आपने खुद को छोटा महसूस किया? क्या आज भी वो शब्द आपके अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर रहे हैं? तो आंखें मूंदकर उस नन्हे बच्चे को याद कीजिए, जो आपके अंदर हमेशा मौजूद है। जिसे मनोवैज्ञानिक कहते हैं ‘इनर चाइल्ड।’

क्या वो बच्चा हंस रहा है, मुस्करा रहा है या दर्द में है? उसे अपने मन के पर्दे पर लाकर बात कीजिए। उसके आंसू पोंछिए। उसे गले से लगा लीजिए। बोलिए, मैं हमेशा तुम्हारे पास हूं, तुम्हारे साथ हूं। तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा। उसे वो सारा प्यार दीजिए, जो आप अपने मां-बाप से चाहते थे और शायद पूरी तरह नहीं मिला। क्योंकि मां-बाप भी देवता नहीं, इंसान होते हैं। उनसे गलती हो सकती है, आपसे भी होगी।

ये अभ्यास रोज सुबह करें, सिर्फ पांच मिनट के लिए। धीरे-धीरे देखेंगे, जो मुस्कराहट सिर्फ होठों पर थी वो अब आंखों में भी झलक रही है। मीठे शब्द के बाण, लगे सही निशान। हो सबका कल्याण।

 

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