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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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हीरा और पन्ना की कहानी, मनुष्य के बेलगाम लालच का सच सामने लाती है

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25.11.2021

यह कहानी है दो भाइयों की। जो साथ पैदा हुए, पले-बढ़े। मां ने एक दिन कहा, बच्चों समय गया है, तुम्हें अपने रास्ते जाना होगा। दोनों भाई निकल पड़े, अपनी दुनिया बसाने। मगर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। जो उन्हें देखता, यही कहता, इनका प्यार कितना सच्चा है। इन्हें कोई जुदा नहीं कर सकता। मगर दिवाली सेे एक हफ्ते पहले, हीरा की लाश दर्दनाक हालत में मिली। चमड़ी पूरी तरह से छिली हुई, सिर्फ एक लाल मांस का ढेर। मौत की वजह, बिजली का झटका।

अखबार में यह खबर पढ़कर मुझे रोना आ गया। भगवान किसी दुश्मन को भी ऐसा अंत न दे। सोचो, उसके भाई पन्ना के दिल पर क्या बीती होगी… अब तक शायद आप भांप गए होंगे कि हीरा और पन्ना कोई आम इंसान नहीं, दो बाघ हैं, जो पन्ना टाइगर रिजर्व में पैदा हुए और उस जंगल की शान थे। प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इन तेजस्वी प्राणियों के संरक्षण का हमने वादा किया था, मगर ये वादा निभा न सके क्योंकि मनुष्य के लालच और स्वार्थ की कोई सीमा नहीं।

जब हीरा की लाश वन विभाग ने जांची तो पहले उन्हें लगा कि ये शिकारी का काम है। बाघ की चमड़ी, हड्‌डी, दांत की बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। मगर कुछ दिन बाद खाल तालाब में तैरती मिली। गांव के 3 लोगों ने माना कि भूल हमारी है। उन्होंने खेत के चारों ओर बिजली वाली तार लगवाई थी। उसी करंट को छूकर बाघ बिलबिलाता हुआ मारा गया। वैसे हीरा-पन्ना ने कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाई थी। मगर शिकारी जानवर की मौजूदगी ही मनुष्य के लिए खौफ की बात है।

इसी मनोदशा का बिल्डर-माफ़िया फायदा उठा रहा है। मुंबई ऐसा शहर है जिसके परिसर में राष्ट्रीय उपवन है। इस हरियाली से जहां आम आदमी को सुकून मिलता है, ज़मीन लोभियों का खून उछलता है कि कब, कहां, कैसे इसे हथिया लें। पिछले एक साल में आरे जंगल में कम से कम 50 बार जानबूझकर आग लगाई गई ताकि आगे उस जमीन पर आईटी पार्क बन सके। आश्चर्य नहीं कि इसी साल एक तेंदुए ने आसपास के बस्तीवालों पर हमला किया। कुछ लोग घायल हुए।

वन विभाग ने जानवर को पकड़ा। अब सवाल है कि उसे किस चिड़ियाघर में भेजें। इस तरह धीमे-धीमे फॉरेस्ट एरिया घटता जाएगा, जमीन पर ऊंची इमारतें बन जाएंगी। कुछ साल बाद याद ही न होगा कि वहां कभी जंगल भी था। ये उस पश्चिमी सोच का नतीजा है जिसमें प्रकृति की हर देन सिर्फ एक ‘रिसोर्स’ है, जिसका फायदा उठाना मनुष्य का हक है। मगर हमारी सभ्यता कुछ और कहती है। महाराष्ट्र की वरली जनजाति सदियों से तेंदुए के साथ, जंगलों में रह रही है।

उनकी रक्षा करते हैं वाघोबा, ऐसे भगवान जिन्हें बाघ या तेंदुए के रूप में दर्शाते हैं। कभी-कभार उनकी भेड़-बकरियों को तेंदुआ उठा लेता है। ऐसा होने पर वे उस जानवर को पकड़ने या मारने का नहीं सोचते हैं। उन्हें भी पेट पालने का, जीने का हक है। इसी तरह राजस्थान में बिश्नोई, नीलगिरी के टोडा और अनके आदिवासियों के रहन-सहन, सोच, आस्था की दाद देनी पड़ेगी। कर्नाटक के हलक्की जनजाति की तुलसी गौड़ा बारह साल की उम्र से वन विभाग की मदद कर रही हैं।

आज वे ‘इनसायक्लोपीडिया ऑफ द फॉरेस्ट’ नाम से मशहूर हैं। तीस हजार पेड़ उन्होंने लगवाए या बचाए हैं। इस साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पैसे और पर्यावरण के महायुद्ध में तुलसी साहसी सैनिक से कम नहीं। मनुष्य का शरीर बना है पंचतत्वों से- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश। जिनको हम प्रदूषित कर चुके हैं।

इसका प्रभाव हमें महसूस हो रहा है, शारीरिक व मानसिक बीमारियों के रूप में। लेकिन आज भी एसी कमरों में क्लाइमेट चेंज पर महज बहस और चर्चा हो रही है। बंजर, वीरान, सुनसान धरती मुबारक हो, जहां चिड़ियों की चहक, फूलों की महक के स्मारक होंगे।

 

 

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