अपने अंदर का ‘कम्पास’ देखकर आगे बढ़ना जरूरी है
पिछले दिनों एक दुखद हादसे में तीन व्यक्तियों की मौत हो गई। वैसे तो आए दिन ऐसी खबरें आती हैं, जिन्हें दो मिनट में हम भूल जाते हैं। पर इस हादसे पर मैं सोच में पड़ गई। है ही कुछ ऐसा अजीबो गरीब।
हुआ यूं कि सवारी गुरुग्राम से बरेली की ओर रवाना हुई थी, एक शादी में शामिल होने के लिए। उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं था, इसलिए गूगल मैप्स के हिसाब से चल रहे थे।
मैप ने दिखाया कि पुल पर से रास्ता है, मगर पुल पूरा बना नहीं था और ये बात गूगल को पता नहीं। जहां पुल खत्म हुआ, काफी हाइट से गाड़ी नदी में गिर गई। अब उठ रहे हैं सवाल। कोई कहता है कि गूगल मैप्स की गलती है, उन पर केस होना चाहिए। कुछ सरकार को गालियां दे रहे हैं कि वहां बैरियर क्यों नहीं लगाया गया।
मेरे दिमाग में ख्याल आया कि ड्राइवर का दिमाग कहां था? शायद उसे एरिया के रास्तों का ज्ञान नहीं। लेकिन, जब सुनसान पुल आया, उसे कुछ अटपटा नहीं लगा? और जो गाड़ी में सवार थे, उनका क्या? वो शायद सो रहे थे।
कहने का मतलब ये है कि आज हमें टेक्नोलॉजी पर अटूट विश्वास है। एक जमाने में टैक्सी चलाने के लिए रास्तों का ज्ञान जरूरी था। अब कोई भी नौसिखिया मैप्स की मदद से टैक्सी चला लेता है। सालों बाद भी उसे शहर की सड़कों का कोई ज्ञान नहीं होगा। क्योंकि गूगल मैप्स है ना! इसे कहते हैं ‘अंधश्रद्धा’।
आंख मूंद कर चलो, दिमाग का इस्तेमाल करने की जरूरत ही नहीं। और ये सिर्फ सड़क के रास्तों के लिए नहीं। आजकल लोग टिप्स के आधार पर शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं। चैट जीपीटी की मदद से ईमेल लिख रहे हैं।
आप कहोगे, इसमें बुरा क्या? जी, एआई की मदद ले सकते हैं, लेकिन आंख मूंदकर उसके सहारे चलना ठीक नहीं। बचपन में मां-बाप ने रोड क्रॉस करना सिखाया था- बेटा, सतर्क रहना! ये कभी ना भूलें। लोग भटक रहे हैं, राहत की तलाश में हैं। ऐसे में इंटरनेट पर फैले कच्चे-पक्के वादों पर जल्द विश्वास कर लेते हैं।
कोई कहता है हल्दी के सेवन से कैंसर रिवर्स होता है, कोई पार्किंसंस के चमत्कारी इलाज के वीडियो बना रहा है। आप रील्स देखकर दवा मंगा लेते हैं। हां, खान-पान से थोड़ा फायदा हो सकता है, मगर डॉक्टर से बिना पूछे दवाई बंद करके किसी के झांसे में आ गए, तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
टेक्नोलॉजी का गलत फायदा तो घोटालेबाज उठा रहे हैं। पुलिस की वर्दी पहनकर चोर धमकाते हैं कि आपका ‘डिजिटल अरेस्ट’ हो गया। ऐसी गिरफ्तारी भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत हो ही नहीं सकती। क्या लोगों को बुद्धू बनाना इतना आसान हो गया है?
खैर, बात गूगल मैप्स से शुरू हुई थी तो वहीं खत्म करते हैं। इस ऐप का इस्तेमाल मैं भी करती हूं मगर सड़क पर मेरी नजर रहती है। कभी-कभार मैं उसके विपरीत भी जाती हूं, मुझे पता है कि वो सौ प्रतिशत सच नहीं। सफर की बागडोर अपने हाथों में अब भी पकड़ी हुई है।
इसी तरह जीवन में भी एक ‘नक्शा’ आपको मिला है, समाज का बनाया हुआ नक्शा। कि सफलता पाने के लिए ‘फास्टेस्ट रूट’ कौन-सा है। आप अंधविश्वास के साथ उस पर चल रहे हैं। सामने विपत्ति प्रकट हो रही है, पर आपका ध्यान तो है नहीं। और हो गया हादसा।
ये विपत्ति हमारे काम-स्वास्थ्य-रिश्तों में आ सकती है। और इसलिए भी क्योंकि रूट एक नहीं, अनेक हैं, पर हमने उन पर विचार ही नहीं किया। सबसे तेज पहुंचना हमेशा जरूरी नहीं। सफर का अपना आनंद होता है। अपने अंदर का कम्पास देखिए… दिशा गलत तो नहीं?