अपने मन की ‘डिस्क’ साफ करना भी जरूरी है…
सितंबर का महीना खत्म होने को आया, अब त्योहार शुरू। नवरात्र, दशहरा, दिवाली, फिर कुछ दिनों बाद साल खत्म होने का इंतजार। समय भाग रहा है। एक और बर्थडे, दो-चार सफेद बाल, स्केल पर थोड़ा और वजन। इन्हीं चीजों से मापते हैं हम अपनी बढ़ती हुई उम्र।
ये ठीक है पर एक और चीज का मैप जरूरी है। आप कंप्यूटर इस्तेमाल करते होंगे, कुछ दिन बाद मैसेज आता है- ‘डिस्क फुल’ यानी फाइल सेव करने की और जगह नहीं। पर दिमाग का क्या? इंसान का प्राकृतिक कंप्यूटर, समय के साथ उसकी डिस्क भी फुल हो जाती है।
अब देखते हैं दिमाग के डिस्क में क्या-क्या भरा है। निरीक्षण करने पर पता चला- 80% कूड़ा है। कुछ तो इतना पुराना कि बदबू मार रहा है। जैसे बीस साल पहले, शादी के बाद सास ने कुछ कड़वे शब्द कहे थे। सास तो चली गईं, पर उनकी आवाज आज भी आपके अंदर गूंज रही है। अब भी वो निगेटिव इमोशन जिंदा हैं।
छोड़िए, मैं तो दूसरी समस्याओं से जूझ रही हूं। पेट में काफी दर्द रहता है, किडनी स्टोन निकला है। अच्छा जी, लेकिन क्या आपको पता है कि इसका ताल्लुक भी आपकी सास से है। मतलब? शरीर की ज्यादातर बीमारियां उत्पन्न होती हैं हमारे उन जज्बातों से, जिन्हें हम अपने अंदर दबाकर रखते हैं।
जब मैंने पहली बार इस थ्योरी के बारे में सुना, मैं हंसी। ऐसा हो सकता है क्या? मगर लुइस हे द्वारा लिखी ‘यू कैन हील यॉर लाइफ’ किताब पढ़ने के बाद मुझे लगा कि उनकी बातों में दम है। हर बीमारी का ‘रूट कॉज’ जो दर्शाया गया है – अपने अंदर झांककर देखिए, सच्चाई झलकेगी।
जैसे किडनी स्टोन का मूल कारण- मन में क्रोध की गांठें। हाई बीपी हो या डायबिटीज, माइग्रेन या पीठ का दर्द, उसके पीछे है लंबे समय से चली आ रही भावनात्मक समस्या। खैर, जरूरी नहीं कि आप लुईस की थ्योरी को सच मानें। पर ये तो मानेंगे कि दिमाग की डिस्क में स्पेस बनाना जरूरी है। भगवान ने डिलीट बटन तो नहीं दिया पर कुछ आसान तरीके हैं, मन में भरी फालतू फाइल्स से मुक्ति पाने के लिए। खास कर किसी इंसान के प्रति गुस्से या कटुता की भावना जब हो।
1. लिख डालिए- कलम हाथ में लीजिए और कागज पर वो सब लिख डालिए जो आप कभी व्यक्त न कर सकीं। बिना रोक-टोक, बिना हिचकिचाहट। बस समय बांध लीजिए- 7 मिनट। उछलती हुई नदी की तरह अपनी भावनाओं को बहने दीजिए।
2. बोल डालिए – एक कुर्सी सामने रख कर मन में सोचिए कि वो इंसान उस पार बैठा है। अब जो भी आप कहना चाहती थीं, कभी कह न सकीं, बोल दीजिए। दिमाग की कढ़ाही में खीझ के पकौड़े जो तल रही थीं, वो बर्तन अब गैस से तो उतरा। अब नए पकवान बना सकेंगे।
3. मन ही मन – कुछ नहीं, आप सिर्फ उनका चेहरा मन के पर्दे पर लाकर उनके साथ कम्युनिकेट कीजिए कि मैं आपसे क्या चाहती थी? क्यों मुझे दुख हुआ? हो सकता है, उनकी तरफ से आपको जवाब भी सुनाई पड़े। ना मिले तो भी इस एक्सरसाइज के अंत में आप उनसे कहिए- ‘मैं तुम्हें माफ करती हूं’। ऐसा करने से मन का डिस्क क्लियर होगा, ऊर्जा मिलेगी। गिले-शिकवे के स्टेशन से गाड़ी हिलेगी। लंबा है सफर, बेहतर कटेगा। जब मन में जमा मैल हटेगा।