सबसे पावरफुल ब्रांड अपने अंदर का आत्मविश्वास है
कुछ दिन पहले मैं एक फैंसी मॉल गई, जहां दुनियाभर की फैंसी दुकानें हैं। डिस्प्ले विंडो में एक जूता पसंद आया, प्राइस टैग लगा नहीं था। पूछना पड़ा, ये कितने का है? सेल्समैन ने गंभीरता से उद्घोषणा की, ‘मैडम 70 हजार रु. का। ओनली।’ जी, उस दुकान का सबसे सस्ता माल यही था।
क्या उसमें हीरे-जवाहरात जड़े थे? नहीं। वही मटेरियल, जो हर जूते में होता है, डिजाइन थोड़ा अलग था। कीमत सिर्फ ब्रांड की थी। क्रिस्टियां डियॉ, अरमानी, लुई वितों, यहां से खरीद का चार्म किसी नुक्कड़ की दुकान में थोड़े ही मिलेगा।
वैसे कुछ कहानी तो फिर भी बनानी पड़ती है ना, तो लीजिए। हमारा बैग ‘मेड इन इटली’ है। कारीगरी देखिए, पूरा हाथ से बना है। अपने देश में भी जूते-बैग हाथ से बनते हैं। मगर देसी-विदेशी हाथों में फर्क होता है, समझा करो। खैर, हाल ही में एक खबर आई जिसने इसका भी भांडा फोड़ दिया।
जिस ब्रांड का हैंडबैग ढाई लाख रुपए का बिक रहा है, उसे बनाने की कीमत सिर्फ 4500 रुपए है। और माल बनता है छोटे-से कारखाने में, जो इटली में है, मगर बनाने वाले हाथ हैं चीनी। दस घंटा काम करते हैं ये वर्कर्स, बंधुआ मजदूर के समान। अगर महीने में एक भी छुट्टी न लें तो भी 1,000 यूरो नहीं बनेंगे (जो वहां रहने के लिए नाम मात्र पैसा है)। ये जानकारी एक कोर्ट केस के तहत दिए गए बयान से बाहर निकली।
लेकिन कॉमन सेंस की बात है, कहीं न कहीं खरीदने वालों को पता था कि इस बैग में कोई बहुत खास बात नहीं। बस लोगो देखकर औरों पर इफेक्ट पड़ेगा, इसलिए हमें लेना है। चिल्ला-चिल्लाकर कहता है, इसके पास जरूरत से ज्यादा पैसा है। शायद इनके घर से भी प्री-वेडिंग का बुलावा आएगा।
पैसा कोई बुरी बात नहीं, जिसने मेहनत से कमाया है, उसे जरूर एंजॉय भी करना चाहिए। मगर हमारे अंदर एक रडार भी जरूरी है। क्या मैं ये अपनी खुशी के लिए कर रही हूं, या सिर्फ दिखावे के लिए? ये आप आसानी से परख सकते हैं, एक सिंपल टेस्ट से। आपने एक ड्रेस ली, शीशे में खुद को देख मुस्कुराईं।
सोचा, मैं अच्छी लग रही हूं। मतलब ड्रेस अपनी खुशी के लिए ली थी, मकसद पूरा हुआ। लेकिन अगर अपनी छवि देखकर आप सोच रही हैं, आज डिंपल जलेंगी, डॉली कॉम्प्लिमेंट देगी, इत्यादि-इत्यादि, तो आप दिखावे वाली कैटेगरी में हैं।
अब आप पूछेंगे, दिखावे में क्या प्रॉब्लम है। दुनिया इसी पर ही तो चल रही है। प्रॉब्लम ये है कि दिखावा करने के बाद भी एक खोखलापन महसूस होता है। क्योंकि सतही स्तर से आगे वो रिश्ता बढ़ नहीं पाता। दो फुट के तालाब में तैरने का वो मजा नहीं, जो गहरे सागर में मिलता है। लोगों की नजर मेरे पहनावे पर लगी हुई है, मुझे तो वो जानते ही नहीं। मेरी खुशी, मेरा गम, मेरा दर्द, मेरा दिल, उस एक लोगो के पीछे छुपा के घूमती हूं। पर इस चक्रव्यूह में से निकलूं कैसे? चलिए एक और प्रयोग करते हैं।
अगली बार लोकल मार्केट जाकर, अपनी पसंद, अपने रंग-ढंग से कपड़े खरीदें। जरूरी है कि आप अपनी पसंद से खुश हों, पहनकर मन में ख्याल आए, मैं अच्छी लग रही हूं। अगर सच्चे दिल से खुद को कॉम्प्लिमेंट किया, तो दूसरे लोगों के भी कॉम्प्लिमेंट्स जरूर आएंगे।
असल में सबसे पावरफुल ब्रांड होता है अपने अंदर का कॉन्फिडेंस। अगर आपके चेहरे पर वो चमकता है, तो लोगों की नजर आप पर टिकेगी। आपके कपड़े-जूते या हैंडबैग पर नहीं। ये करके कैसा महसूस हुआ, नोट करें। एक संतुष्टि जरूर मिलेगी।
जरूरी नहीं कि लंबी गाड़ी बेहतर गाड़ी है, आप छोटी गाड़ी में भी बढ़िया सफर कर सकते हैं। जरूरी नहीं कि हर छुट्टी विदेश में मनाई जाए, आप भारत में भी आनंद ले सकते हैं। ऊंचे ब्रांड पहन कर आप बुद्धू बन रहे हैं। उन कंपनियों की जेब भर रहे हैं। दिखावा है एक धोखा। खत्म करो अपने से धोखा।