न्यूटन के ‘थर्ड लॉ ऑफ मोशन’ को जिंदगी में लागू करें
एक समय था जब टेनिस खेलने वाले काफी मशहूर होते थे। आंद्रे अगासी नाम के एक टेनिस प्लेयर लोगों के काफी चहेते थे। खासकर लड़कियों के। जाहिर है कि जवान लड़के को उनका अटेंशन अच्छा लगेगा। मगर फिर आई एक प्रॉब्लम। थी तो छोटी मगर आंद्रे बहुत परेशान थे।
छोटी-सी उम्र में उनके बाल गिरने लगे थे। हैं! ये कैसी नाइंसाफी। खैर, उन्हें अपनी इमेज का कितना ख्याल था कि एक बढ़िया-सी विग बनवाई। लंबे, रेशमी बालों वाली। कोर्ट पर उतरने के पहले वो हेयरपीस पहनते और धड़ाधड़ बॉल मारने के लिए तैयार।
नई हेयरस्टाइल लोगों को पसंद आई। उन्होंने भी लंबे बाल के साथ हैड-बेंड वाला लुक अपनाया। क्राउड को नकल करते देख आंद्रे भी खुश। सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन नहाते समय विग गीली हो गई। और आधे बाल गिर गए। उफ्फ! अब क्या करूं। नया बनवाने का समय था नहीं।
किसी तरह बाल चिपकाकर आंद्रे फ्रेंच ओपन का फाइनल खेलने निकले। अब उनका ध्यान बॉल पर नहीं, विग पर था। ‘अगर मैं ज्यादा दौड़ूंगा-कूदूंगा तो गिर जाएगी। लाइव टीवी पर बेइज्जती होगी’। तो इस डर से इतना हल्का गेम खेला कि बुरी तरह पिट गए।
आखिर उनकी गर्लफ्रेंड ने कहा- तुम एक काम करो। बाल ही निकाल दो। आंद्रे ने कहा- लोग क्या कहेंगे? मगर काफी सोचने के बाद, उन्होंने बात मान ली और गंजे हो गए। अगला टूर्नामेंट पूरे जोश से खेला और बड़ी मार्जिन से जीत भी गए। अखबारों में जब खबर छपी तो लंबा आर्टिकल उनके शानदार खेल प्रदर्शन पर था। बालों की नई स्टाइल का जिक्र बस एक लाइन में, किसी को परवाह नहीं थी। तो फिर सारा टॉर्चर आंद्रे अगासी के दिमाग में ही हुआ।
ये कल्पना करके कि ऐसा होगा, वैसा होगा, हम पूरी फीचर फिल्म बना लेते हैं। ‘लोग क्या कहेंगे’ एक ऐसा ख्याल है जो हर किसी के मन में उभरता है। इस चक्कर में हम अपनी पसंद के कपड़े नहीं पहनते। अपने इंट्रेस्ट का करिअर नहीं चुनते। अपनी मंगेतर को कहते हैं- हमारी शादी नहीं हो सकती।
ये खौफ हमारी खिलखिलाती जीवनधारा को मलिन करता है। हो सकता है लोग कुछ कहेंगे। मगर कितनी देर? एक दिन, दो दिन, चार दिन। फिर बोर हो जाएंगे। जीना तो आपको है। निभाना आपको। उसमें लोगों का कोई योगदान नहीं। बस, आपने अपना पावर उनके हाथ में दे दिया है कि वो कुछ कहेंगे तो मुझे बुरा लगेगा ही। मगर क्यों?
क्योंकि अपने अंदर वो शर्मिंदगी पहले से मौजूद है। कोई ऐसी चीज जो आप खुद नकारते हैं, ठुकराते हैं। एक जला हुआ हिस्सा। तो जब लोग उस पर नमक फेंकते हैं तो आपको चोट पहुंचेगी ही। असली काम आपका ये है कि उस जले पर खुद मरहम पट्टी लगाएं।
प्यार और उपचार से उसे ठीक करें। दाग रहेगा, और वो अच्छी बात है। आपको याद दिलाएगा कि हां, मुझे चोट लगी थी। मगर मैंने अपना इलाज भी तो किया। फिर चोट लगेगी तो मुझे भागकर किसी और से पट्टी नहीं करवानी पड़ेगी। मैं अपने दिल का डॉक्टर खुद हूं। मेहनत से, लगन से, प्रण-वचन से मैंने ये पदवी पाई है।
प्रकृति का एक उसूल है- जो आप यूनिवर्स में देते हो, वही लौटकर आपके पास आता है। ये बात न्यूटन ने थर्ड लॉ ऑफ मोशन द्वारा भी समझाई थी। तो अगर आप लोगों से अपेक्षा रखते हैं कि वो आपके बारे में बातें ना बनाएं, पहले आप उनके बारे में टिप्पणी देना बंद कीजिए।
अरे, मैं नहीं कुछ कहता। शायद ये सच भी हो। लेकिन आपके मन में बात आती तो है? हमारी सोच में इतनी शक्ति है कि बिना कुछ कहे, अगले को संदेश मिल जाता है। तो असली काम अंदरूनी है। अपने दर्द पर निशाना लगाइए, किसी और के दर्द पर नहीं। मुश्किल है पर मगर सुकून वहीं मिलेगा। लोग क्या कहेंगे, कहने दो। मस्त रहो, दिल की सुनो।