सोचने-बोलने का ढंग बदलें, सबकुछ बदल जाएगा
डिक्शनरी का सबसे शक्तिमान शब्द है- ‘ना’। सबसे भयानक भी। आपको किसी रिश्तेदार ने पार्टी में बुलाया है। आप थके हैं, जाना नहीं चाहते। मगर ना कह नहीं पाते। ये तो हुई दुनिया वालों की बात। आपके अंदर भी एक दुनिया है, आत्मिक दुनिया। यहां भी एक छोटी-सी आवाज है जो हर वक्त कुछ सलाह देती है। डांटती-फटकारती है, धिक्कारती है। और इस आवाज को हमने चाबुक चलाकर इस तरह ट्रेन किया कि 100 में से 99 बार वो कहती है- ना।
आपको प्रमोशन मिल सकता है, ऐसी अफवाह है। इनर वॉइस कहती है, प्रमोशन? तेरे से ना हो पाएगा। अब प्रमोशन आने की खुशी नहीं, डर-सा है। वैसे आप आगे बढ़ना भी चाहते हैं। लेकिन उस रास्ते पर पैर रखने के पहले ही आपने हार मान ली।
बात सिर्फ ऑफिस तक नहीं। डॉक्टर के पास गए, पता चला शुगर लेवल हाई है। वजन घटाने की सलाह मिली। दस दिन आपने ट्राय किया। खाने पर ध्यान दिया, व्यायाम किया। फिर स्केल पर चढ़े और देखा, सिर्फ 200 ग्राम कम… उफ। ये मेरे बस का नहीं, और आपने मुहिम छोड़ दी।
चलिए, प्रमोशन नहीं आपके बॉस ने एक नए प्रोजेक्ट में शामिल किया। मगर जिस काम को महीना लगता है, उसे पंद्रह दिन में कंप्लीट करना है। आपका रिएक्शन- ‘क्या मुसीबत है, कहां फंस गए।’ पर बॉस का रवैया बिल्कुल अलग… पूरी टीम को बुलाकर पेप टॉक दी- काम चैलेंजिंग है, मगर कोशिश करते हैं।
बॉस ने फोर्सफुली कहा, हम सबके लिए एक अच्छा अवसर है कुछ कर दिखाने का। अगले दिन पूरे जोश के साथ काम शुरू हुआ। दो हफ्ते किसी को सुध-बुध ना थी। हार्ड वर्क के साथ स्मार्ट वर्क भी किया। और प्रोजेक्ट डेडलाइन के अंदर कंप्लीट हो गया। उस दिन पूरी टीम का उत्साह देखने लायक था। अब तो बॉस से लोग पूछ रहे थे, सर अगला प्रोजेक्ट कब स्टार्ट हो रहा है?
आपके अंदर भी नई ऊर्जा आई। फिर से वजन घटाने का प्लान बनाया। इस बार भी दस दिन बाद खास कम नहीं हुआ। अंदर से हल्की सी आवाज उठी- कुछ नहीं बदल सकता, एेसा ही रहेगा। लेकिन अब आपकी सोच बदल गई है। इनर वॉइस को हल्के से झाड़ा, रिजल्ट आने में समय लगता है। और इस बार हार नहीं मानी।
सूरज के साथ सैर करते हुए मन में दोहराया, आज एक नया दिन है, नए जोश के साथ इस दिन का आनंद लेना है। आपकी चाल-ढाल में एक हल्कापन आने लगा। लोगों ने भी नोटिस किया। पूछा, कौन-सा जादुई टॉनिक पी रहे हो भाई? आंखों में चमक जो है, जैसे कि वजन के साथ-साथ उम्र भी घट गई हो।
टॉनिक है, मगर वो दुकान में नहीं बिकता। वो आपके अंदर ही मैन्युफेक्चर होता है। उस टॉनिक का नाम है ‘बी-पॉजिटिव’। जिंदगी का नाम चुनौती, मगर आप उसका सामना कैसे करते हैं… रोते हुए या हंसते हुए? ये डिपेंड करता है आपकी वोकेबुलरी पर। जी हां, बस इतनी-सी ट्रिक है। ‘ये मेरे बस की बात नहीं’- क्या ये ख्याल आपके मन में अक्सर उभरता है?
पॉजिटिव सोच वाला उसी ख्याल को री-फ्रेम करता है कि मुश्किल जरूर है लेकिन कर सकते हैं। इससे ब्रेन को ग्रीन सिग्नल मिलता है। जिस तरह ट्राफिक में अनुभवी ड्राइवर गली से लेकर आपको टाइम पर पहुंचा देता है।
वैसे ही ब्रेन भी कोई तरीका निकाल लेता है। लेकिन अगर सोच निगेटिव है, तो ब्रेन को लाल बत्ती दिखती है। मगर अब आपके पास एक अस्त्र है- शब्द शास्त्र। अपने सोचने का, बोलने का ढंग बदलें। धीरे-धीरे सबकुछ बदल जाएगा।
‘आइ कांट डु इट’ को कहना है ‘आई विल ट्राय’। अब सवाल आता है फेल हो गए तो? ‘आई विल ट्राय अगेन’। दुनिया की हर सक्सेस के पीछे कई फेल्योर हैं। आप उनकी कहानियां पढ़कर प्रेरणा लें। पूरा लेख पढ़कर अगर ख्याल आ रहा है- ये सब बकवास है तो बस वो लाइन डिलीट करके कहना है- आज के दिन कोशिश करूंगा। आई विल बी पॉजिटिव। निगेटिव ख्याल को मार दें। हफ्ता, दो हफ्ता, महीने बाद आपको लोग पूछेंगे, कौन-सा टॉनिक पी रहे हो? फिर आप मुस्कराते हुए कहना, बी पॉजिटिव।