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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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एक कागज की कश्ती पर सारे सपनों का बोझ ना डालें

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कॉलेज में मैंने इकोनॉमिक्स में बीए किया। वैसे दसवीं में स्कूल की टॉपर थी। सबने सोचा कि लड़की जरूर मेडिकल या इंजीनियरिंग करेगी। लेकिन खून देखकर मुझे चक्कर आता है और मैथ्स से बुखार। तो फिर इकोनॉमिक्स एकमात्र ऐसा सब्जेक्ट था जो आर्ट्स में शामिल है, मगर एक एंगल से साइंस भी है।

खैर, उन तीन सालों में कई मोटी-मोटी किताबें झेलीं। एग्जाम के पहले कुछ लंबी रातों में रट्टा मारा। अच्छे नंबर से पास भी हुई। अब कई साल बाद मन में सवाल आया- मैंने बीए इकोनॉमिक्स के दौरान ऐसा क्या पढ़ा, जिससे जीवन में कुछ फायदा हुआ? कौन-सा ऐसा ज्ञान मिला, जिसका मेरी आज की जिंदगी से कोई वास्ता हो? वैसे यही सवाल बीटेक डिग्री के बाद भी पूछा जा सकता है।

चार साल की पढ़ाई के बाद क्या हमारा लाड़ला इंजीनियर एक फ्यूज रिपेयर करने लायक है? ना जी ना। हमारी शिक्षा प्रणाली में प्रैक्टिकल नॉलेज के कोई मायने नहीं। बस पेपर लिखते जाओ, प्लेसमेंट में जॉब पाओ। फिर इन स्नातकों को जॉब मिलता क्यों है?

भाई, आप राशन की दुकान में जाते हो तो चावल खरीदने से पहले परखते हो। उस चावल से अपने घर में आकर पुलाव खाते हो, ना? ठीक इसी तरह प्लेसमेंट में कंपनी रॉ मटेरियल को जांचती है, छानती है। फिर उनको अपनी रिक्वायरमेंट के हिसाब से ‘पकाती’ है। जिसे कहा जाता है ट्रेनिंग।

तो फिर कॉलेज की पढ़ाई का मतलब क्या है? काफी हद तक ये एक ऐसा समय है जिसमें आपकी पर्सनल ग्रोथ होती है। स्कूलों में मां-बाप और टीचर की छत्रछाया थी। अब पिंजरे का दरवाजा खुल गया है, तुम आजाद हो। उस आजादी के नशे में डूबना या उस ऊर्जा से खुले आसमान में उड़ना- ये तुम्हारे हाथ में है।

कुछ ही स्टूडेंट ऐसे हैं, जिन्हें अपनी पसंद के कॉलेज में एडमिशन मिला। तो बाकी क्या करें? रोज उदास चेहरा लेकर क्लास अटेंड करें? या कैंटीन में बैठे रहें? एक तीसरा रास्ता है। तुम चाहते थे आम, मिला खट्टा बेर। मगर स्वाद तो उसमें भी है, चखकर देखो।

हर कॉलेज में कोई एक-दो प्रोफेसर होते हैं, जिनके लिए टीचिंग सिर्फ पेशा नहीं, पैशन है। ऐसे शख्स के साथ नाता जोड़ो। मन से पढ़ाने वाले को मन से पढ़ने वाले की तलाश रहती है। इनके साथ ज्ञानवर्धक बातें करो, सिलेबस से हटकर किसी प्रोजेक्ट में गाइडेंस लो। बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। अगर ऐसा कोई शख्स ना मिले तो लाइब्रेरी में घुस जाओ। और हां, लाइब्रेरियन से दोस्ती जरूर करना। उनकी गाइडेंस से किताबों की दुनिया का सफर और आनंदमयी होगा।

तीसरी बात, हर कॉलेज में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज होती हैं। उनमें भाग जरूर लो। चाहे ड्रामा हो, डांस या डिबेट। अगर शुरू में तुम्हें सीनियर्स चांस ना दें तो हार ना मानो। लगे रहो, उनसे दोस्ती करो। अपने कॉलेज फेस्ट के लिए गधा-मजदूरी करनी पड़े तो हंसकर वो भी मंजूर करो। आगे मौका जरूर मिलेगा।

हो सकता है पहली बार स्टेज पर आने का चांस जब मिला, तुमने कोई तीर नहीं मारा। धीरे-धीरे ही तो कॉन्फिडेंस बढ़ता है। कुछ लोग इसे मानते हैं वेस्ट ऑफ टाइम। गलत। तुम इसको क्लासरूम के बाहर का एजुकेशन समझो। यानी कि लाइफ स्किल्स की ट्रेनिंग।

डिग्री सिर्फ कागज का टुकड़ा है। और इस कागज की कश्ती पर हमारे सारे सपनों का बोझ। आज अपनी कल्पना, अपनी दृढ़ता से सपनों को संजोने का प्रण लो। जो सीखना है, सीखो। चाहे एप बनाना हो या साबुन। सब ऑनलाइन उपलब्ध है, बस डुबकी लगाने की इच्छा चाहिए। मगर सिर्फ सतह पर नहीं, गहराई तक जाना है। क्योंकि मोती तो वहीं प्राप्त होंगे।

कॉलेज खत्म हुए अरसा हो गया हो, तो भी यही सलाह दूंगी कि अपने मन का पोषण जारी रखें। नए बीज बोने से नए विचार आएंगे। प्रॉब्लम सुलझाने के तरीके पाएंगे।

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