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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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जीवन के कुछ सरल सुख अब बहुत दुर्लभ हो गए हैं…

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क्या आपने विदेश में किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर कुछ दिन गुजारे हैं? शुरू में तो अच्छा लगा होगा। साफ-सुथरी सड़कें, हरा-भरा लॉन। सब घर एक जैसे, बड़ी सहूलियत से बने हुए। लेकिन दो दिन बाद एक बात खटकने लगती है। चारों तरफ सन्नाटा।

खिड़की के पास बैठे रहो, एक इंसान नहीं दिखता। न दूधवाला, न प्रेसवाला। न कोई घंटी बजती है, न कोई शोर मचता है। सुबह-शाम कोई कुत्ता घुमाते हुए दिख गया तो बस, दिन बन गया। इंसान तो कान में हेडफोन लगाए हुए किसी और दुनिया में विलीन है।

वैसे अपने देश में भी अब यही सीन दिखने लगे हैं। खासकर बड़े शहरों में। मेरी मम्मी को सब्जी वाला पहचानता था। उनके लिए अच्छा माल संभालकर रखता था। थोड़ा भाव-ताव होता था, दोनों को संतुष्टि मिलती थी। अब तो एप से सब्जी घर पहुंचती है, हर बार डिलीवरी बॉय नया। दो शब्द भी एक्सचेंज नहीं होते।

ऑफिस में भी एक नया ट्रेंड है। युवा पीढ़ी को फोन उठाकर बात करने में बड़ा त्रास आता है। कहते हैं, ‘प्लीज़ टेक्स्ट मी’। ज़ूम कॉल में भी एक फैशन है कि जी हम तो कैमरा बंद करके मीटिंग अटेंड करेंगे। और मजे की बात। एक परिवार के चार सदस्य, अपने-अपने फोन पर चार अलग सीरियल देख रहे हैं। फैमिली ग्रुप में मैसेज आता है, ‘खाना तैयार है।’ हर कोई अपनी मर्जी से आता है, मर्जी से खाता है। जब चाहिए, प्लेट में लिया, माइक्रोवेव में गर्म किया।

शायद यही वजह है कि दुनियाभर में अकेलेपन का पैंडेमिक फैला है। डिप्रेशन आम बात है। बच्चे भी थैरेपिस्ट के पास जा रहे हैं। वैसे अच्छी बात है, पहले इन चीजों को दबाकर रखा जाता था। लेकिन ये भी सच है कि जीवन के कुछ सरल सुख अब बहुत दुर्लभ हो गए हैं।

तो क्या करें? परिवार को जोड़कर रखना भी आर्ट है। जो पहले सामान्य ढंग से होता था, अब उसमें भी सोच और एफर्ट डालना जरूरी है।

पहला आइडिया- जैसे एप से खाना मंगाना अब कॉमन है, उसमें मजा नहीं। तो क्यों न महीने में एक बार सब मिलकर नया पकवान बनाएं? कुछ इस तरह कि सब शामिल हों।

दूसरा आइडिया- एक मोबाइल मुक्त शाम, परिवार के नाम। सबलोग एक डब्बे में अपना-अपना मोबाइल डाल दें और फिर साथ कोई एक्टिविटी करें। जैसे ताश का कोई हल्का-फुल्का गेम, या अंताक्षरी या कैरम। ऐसे खेलों में हंसी-मजाक, चहल-पहल जरूर उत्पन्न होती है। बड़े भी बच्चे बन जाते हैं।

तीसरा आइडिया- पिकनिक पर निकल पड़ें। फूड कोर्ट और फाइन डाइन में तो हम खाते ही हैं। मगर घर की आलू-पूरी, मठरी-अचार और थर्मस में गर्मागर्म चाय पीने का मजा कुछ और ही है। खाने के बाद, जमीन पर लेटकर, पेड़ की छांव में जो नींद आती है, ओह हो…। इतना आनंद और वो भी फ्री में।

चौथा आइडिया- मौसम का जादू। बारिश में चारों ओर हरियाली है। घर पर चाय-पकौड़ा खाना तो बनता है पर एक बार बाहर जाकर भीगना भी तो चाहिए। ठंड में रजाई में दुबककर पुराने जमाने की कहानियां सुनो-सुनाओ। और गर्मियों में… दिमाग ठंडा रखने के उपाय ढूंढें!

आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात- समय- खासकर बच्चों के साथ। जैसे पेड़-पौधों को पनपने के लिए धूप और पानी चाहिए, रिश्ते जोड़कर रखने के लिए मन और ध्यान लगाइए। ध्यान माने अटेंशन कि आप मेरे पास हो, मेरी बात सुन रहे हो, मेरी आपको परवाह है।

आज सबका अटेंशन वाट्सएप, इंस्टाग्राम पर है। कॉफी शॉप में चार लोग बैठकर फोन के अंदर किन्हीं और चार लोगों की तरफ ध्यान दे रहे हैं। तो पहला कदम आप उठाइए। दोस्त से मिलते वक्त फोन टेबल पर नहीं, जेब में ही रहने दो। आंख में आंख मिलाकर बातें बहने दो।

जब चले जाएंगे क्या रहेगा याद? चंद पलों का संवाद। दिल से दिल मिलाओ, अकेलापन दूर भगाओ।

 

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