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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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सैंडविच जेनरेशन के सामने आज कई चुनौतियां हैं

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  • डिफ्रेंट एंगल – 40-50 उम्र की मिडिल एज पीढ़ी को ‘सैंडविच जनरेशन’ कहा जाने लगा ह

सैंडविच एक ऐसी चीज है, जो सबने खाई है। ब्रेड के दो टुकड़ों के बीच अनेक फिलिंग्स डालकर आप तरह-तरह की सैंडविच बना सकते हैं। शायद आपने सबवे में भी खाई होगी, जिसमें अपनी पसंद की पैटी व सॉस डलवा सकते हो। चलिए, आज बनाते हैं एक नए तरह की सैंडविच।

नीचे की ब्रेड होगी पुरानी रेसिपी से बनी हुई। 70-80 साल पुरानी। ये ऐसी ब्रेड है, जिसने कई मुश्किलें झेली हैं। जीवन की भट्‌टी में ज्यादा सिंककर थोड़ी कड़क हो गई है, कुछ रूखी भी। मगर खाकर एक अजीब सुकून भी मिलता है। ऊपर की स्लाइस कुछ अलग है। उसकी रेसिपी पिछले 15-20 साल में ही मालूम हुई। और बदलती भी रहती है। देखने में मुलायम है, पर खाने में अलग। जल्दी हजम नहीं होती। मगर क्या करें, अपनी ही बेकरी का प्रोडक्शन है।

आप सोच रहे होंगे, मैं कौन-सी सैंडविच की बात कर रही हूं? भाई, ऊपर वाली ब्रेड है हमारे बड़े-बुजुर्ग, नीचे वाली है हमारे बच्चे। और बीच में 40-50 की उम्र की ‘मिडिल एज’ कहलाने वाली जनता। आजकल इस पीढ़ी को नाम दिया गया है- ‘सैंडविच जेनरेशन।’

एक तरफ हमारे मां-बाप, जिन्होंने लंबी उम्र पाई है। 80 साल तक जीना अब आम बात है। मगर उम्र के साथ हमारे प्यारे बुजुर्ग हो जाते हैं थोड़े सनकी। ज्यादातर पढ़े-लिखे और सक्षम सीनियर सिटीजन स्वतंत्रता से जीना चाहते हैं। मगर कुछ आदतें वो बदलना नहीं चाहते। जैसे कि हर काम खुद करना, जबकि शरीर अब पहले जैसा रहा नहीं। जब बच्चे कहते हैं, आप कुक रख लो, एक 24 घंटे का हेल्पर रख लो, तो मम्मी कहती हैं- नहीं। मेरे हाथ-पैर क्या टूट गए हैं? खाली बैठूंगी तो करूंगी क्या दिन भर।

दूसरी ओर ओवर-डिपेंडेंट मां-बाप हैं, जो नया नहीं सीखना चाहते। चाहे उबर मंगवानी हो या पेटीएम- टेक्नोलॉजी से वो इतना डरते हैं कि अपना ही नहीं पाते। खैर, छोटी-सी बात है पर धीरे-धीरे वो अपना कॉन्फिडेंस खो देते हैं। और डिप्रेशन जैसे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

संभालना किसे है? उनके बच्चों को। है उनकी ड्यूटी, मैं मानती हूं पर भार पड़ता है घर की महिला पर। जो कामकाजी भी हो सकती है या गृहिणी। मगर उसका काफी समय लग जाता है बच्चों में। उनका टिफिन, होमवर्क, ट्यूशन। 13-14 साल के टीनएजर सीधा मुंह पर बोल देते हैं- ‘आपको कुछ नहीं आता। बहुत ओल्ड-फैशन्ड हो।’ कोई भी चीज मना करो, अच्छी सलाह दो, उन्हें नहीं सुनना। दूसरी ओर बुजुर्ग कहते नहीं थकते- ‘तू तो आज भी मेरे लिए बच्चा है। और हमेशा रहेगा।’ वो अपनी सुनाते रहते हैं- ‘इतना खर्च न करो, वगैरह-वगैरह।’

तो ऊपर से भी प्रेशर, नीचे से भी- आप बीच में चुपचाप दबे हुए। इसलिए सैंडविच! इन दो स्लाइस के बीच मिलती है एक कुचली, थकी-हारी पैटी, लाल-पीले गुस्से वाला सॉस और आंसू दिलाने वाला प्याज। परिवार इतनी दुखी सैंडविच खाएगा तो घर में क्लेश ही होगा!

अब करें क्या? ब्रेड वही रहेगी, पर फिलिंग बदल सकती है। हमें चाहिए धैर्य से भरी पैटी, मीठी बोली वाला सॉस और हास्य रस वाली हल्की-फुल्की हरी पत्ती। मगर ये लाएं कहां से? किसी तरह काम चल रहा है, अंदर खालीपन है, चिड़चिड़ापन है। मन की शक्ति बैंक के खाते की तरह होती है। अगर आप उसमें कुछ जमा नहीं करेंगे तो निकालेंगे क्या? इसलिए दिन का एकाध घंटा रोज अपने लिए निकालें।

चाहे उस वक्त कुछ ‘फालतू’ काम करें। गाने का शौक कभी था, तो गाओ। 15 मिनट रोज आंख मूंदकर ध्यान जरूर करें। चाहे ब्रह्माकुमारीज़ की तरफ आकर्षित हैं या सद‌्‌गुरु। आजकल इंटरनेट पर अनेक गाइडेड मेडिटेशन मौजूद हैं। जब अंदर से शांति मिलेगी, आसपास की दुनिया खिलेगी। सैंडविच स्वादिष्ट लगेगा, घर का ‘वाइब’ बदलेगा। ट्राय करके तो देखिए आज से।

 

 

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