90 प्रतिशत आप औरों के साथ मिलकर चलें, लेकिन 10 प्रतिशत अपने मन की भी करें
‘अकेले हैं, तो क्या गम है, चाहें तो हमारे बस में क्या नहीं!’ कितने सुंदर बोल हैं इस गाने के लेकिन… अगली लाइन ने सब कबाड़ा कर दिया- ‘बस इक जरा, साथ हो तेरा…’ इसी साथ के चक्कर में ख्वाहिशें अधूरी रह जाती हैं। बाल सफेद हो जाते हैं। हम दूसरों को कोसते हैं और अपनी किस्मत को भी।
पिछले महीने मैंने पूरा इटली घूमा। अकेले। मुझे घूमने का शौक है, बाकी परिवारजनों को खास नहीं। मेरी बेटी की छुटि्टयां चल रही थीं मगर उसने कहा, कभी और चलेंगे। मैंने सोचा, कल किसने देखा है। सच कहूं तो पच्चीस साल से मेरे सपनों में इटली आ रहा है। अब हाथ में कुछ पैसे भी हैं, समय की बहती गंगा में हाथ धो लो।
मैं गई पीसा, फ्लोरेंस, वेनिस और रोम। बहुत मजा आया। मौसम सुहाना था, लोग अच्छे थे। खाना तो लाजवाब। इटली की संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर ने भी मन मोह लिया। अब आप पूछेंगे, कोई परेशानी नहीं हुई? थोड़ी-बहुत। एक दिन सारी ट्रेन कैंसल हो गईं, होटल की बुकिंग होते हुए मैं वेनिस पहुंच नहीं पाई।
ठीक है, मैं दो बस और शेयर-टैक्सी के सहारे एक छोटे-से शहर तक आ गई। रात वहीं गुजारी। आजकल अगर आपके हाथ में चलता हुआ मोबाइल फोन है तो हर जानकारी मिल जाती है। अगर लोकल भाषा आप नहीं जानते तो गूगल ट्रांसलेट आपका मित्र है। चाहे म्यूजियम का टिकट हो या ट्रेन का, हर चीज आसानी से ऑनलाइन खरीदी जा सकती है।
वैसे जब लोग पूछते हैं आपने कैसे मैनेज किया, उसके पीछे उनका असली सवाल ये होता है कि महिला होते हुए आपको कोई परेशानी तो नहीं आई? सच कहूं तो मुझे 12 दिन में एक सेकंड के लिए भी डर नहीं लगा। जो भी मिला, तमीज से पेश आया। बाकी तो अपनी कॉमस सेंस से काम लेना पड़ता है।
वैसे कई महिलाएं अपने आपको अबला नारी के रूप में ढाल लेती हैं। मेरी कई ऐसी सहेलियां और रिश्तेदार हैं, जो कहती हैं- ‘हमें कुछ नहीं आता। सब कुछ ‘वो’ करते हैं।’ पढ़े-लिखे होने के बावजूद वो न तो एटीएम से पैसे निकाल सकती हैं, न हवाई जहाज का टिकट खुद बुक कर सकती हैं।
शायद यह उनकी अपनी चॉइस है, या पति को इसी से इम्पोर्टेंस मिलती है। खैर, मैं तो हर किसी को ये सलाह दूंगी कि चाहे आपके घरवाले कितने भी उदार हों, अच्छे हों, आपको अपना अस्तित्व बनाकर रखना है। पति-पत्नी आखिर दो अलग-अलग इंसान हैं। उनकी सोच, उनके सपने कुछ अलग भी हो सकते हैं। 90 प्रतिशत आप साथ चलें, लेकिन 10 प्रतिशत अपने मन की भी करें।
एक सिम्पल उदाहरण लेती हूं। हो सकता है आपको हॉल में पिक्चर देखना पसंद हो, उन्हें नहीं। जब भी साथ जाते हैं, वो बोर होते हैं। पिछली बार तो खर्राटे भी भरने लगे। तो फिर मेरा सुझाव है कि आप अकेले भी पिक्चर देखने जा सकती हैं। शुरू में थोड़ा अजीब महसूस होगा पर फिर आपको भरपूर आनंद भी मिलेगा।
इससे भी सरल एक प्रयोग- आप अकेले कॉफी पीने निकल पड़िए। सोचिए कि ‘दिस इज़ डेट विद मायसेल्फ।’ वहां पहुंचकर मेनु से एक बढ़िया कॉफी मंगाइए। अगर शीशे के पास बैठ सकें तो एक-एक चुस्की का आनंद लेते हुए, आते-जाते लोगों को ऑब्जर्व कीजिए। और धीरे से मुस्कराइए।
अकेलापन हमें काटता है मगर एकांत का अहसास निर्मल होता है। जी हां, चाहे आप भीड़ के बीचों-बीच हैं या फिर रेगिस्तानी द्वीप पर एकमात्र प्राणी, एक साथी जरूरी है- आपकी अंतरात्मा। क्या आपने उसकी आवाज कभी सुनी है? या फिर बाहर की दुनिया के शोरगुल में वो डूब गई है?
शायद हम इस शोरगुल में इसलिए डूबते हैं, क्योंकि हमें डर लगता है। किसी को पता ना चले कि मैं कितनी कमजोर हूं, मुझमें कितनी हीन भावना है। तो मैं दूसरों को देखकर, उनकी नकल कर, अपने आपको ढाल लेती हूं। मेरा असली रूप क्या है, कोई जान नहीं पाया। मैं भी नहीं। तो करते हैं, अपने से दोस्ती की पहल। महीने में एक बार, खुद के साथ आउटिंग। खुद के साथ रोमांस। एक गुलाब का फूल खरीदें, उसे सूंघें और मन ही मन कहें, आई लव यू। भगवान ने मेरे जैसा एक पीस ही बनाया, उसे मैंने दिल से अपनाया।
चाहे आपके घरवाले कितने भी उदार हों, अच्छे हों, आपको अपना अस्तित्व बनाकर रखना है। पति-पत्नी आखिर दो अलग-अलग इंसान हैं। उनकी सोच, उनके सपने कुछ अलग भी हो सकते हैं।