हमें शरीर हिलाना-डुलाना है, क्योंकि भगवान ने इसे हिलने-डुलने के लिए ही बनाया है
कई दिनों से मेरी गर्दन और कंधे में हलका-सा दर्द हो रहा था। कभी थोड़ी मालिश कर ली, कभी बाम लगा लिया। पर अकड़न महसूस होती रही। फिर सोचा, इसका इलाज जरूरी है। सलाह-मशविरे के लिए मैं पहुंची एक क्लिनिक में, मगर डॉक्टर के पास नहीं। मैंने ढूंढा एक फिजियोथेरेपिस्ट।
ये एक ऐसा प्रोफेशन है, जिसे हम इतना सम्मान नहीं देते, जितना उसे मिलना चाहिए। मेडिकल एंट्रेंस देते वक्त विद्यार्थी चाहता है मुझे एमबीबीएस सीट मिले। चलो, वो नहीं तो कम से कम बीडीएस। उसके बाद ही वो फिजियोथेरेपी की तरफ मुड़कर देखता है। कि भाई और कोई चारा नहीं, कर लेते हैं। पर दो-तीन सेशन के बाद मेरा नजरिया बदल गया है। हमें कुशल फिजियोथेरेपिस्ट की सख्त जरूरत है। पहली बात मुझे पता चली कि खोट मेरी गर्दन में नहीं, लाइफस्टाइल में है।
आप रोज कम्प्यूटर के सामने बैठकर काम करती हैं, फिजियो ने पूछा। हां, पर ज्यादा नहीं, सिर्फ पांच-छह घंटे। वो हंसकर बोले, सालों से आप ऐसा कर रही हैं तो असर आना ही है। 25 से 40 की उम्र में इतना पता नहीं चलता। पैसे कमाने की होड़ में हम सब अपनी बॉडी का भुर्ता बनाते हैं। तकलीफ चालीस के बाद भुगतनी पड़ती है। खैर, ज्यादातर लोग हमारे पास तभी आते हैं, जब दर्द सहन नहीं होता, आप फिर भी समय से आई हैं।
अब आई इलाज की बात तो आपकी मांसपेशियों में दम नहीं। इसलिए पोश्चर बिगड़ गया है। कंधा झुक गया है। तो आपको शरीर हिलाना-डुलाना है, क्योंकि भगवान ने इसे हिलने-डुलने के लिए ही डिजाइन किया है। आजकल जिम का फैशन है, मगर वहां जाना जरूरी नहीं। हम कुछ सरल व्यायाम सिखाएंगे जो आप घर पर कर सकती हैं।
हर व्यायाम को उन्होंने एक कहानी के माध्यम से बताया, ताकि याद रहे। ये देखिए, अर्जुन बाण खींच रहा है, वही एक्शन आपको करना है। फिर कुएं में से पानी निकालना है। और थोड़ा माधुरी की तरह धक-धक भी करना है, मगर जमीन पर लेटे हुए। एक्सरसाइज सिखाने का यादगार और असरदार तरीका।
आजकल मेंटल हेल्थ यानी कि मानसिक हालत पर काफी चर्चा हो रही है। कई कम्पनियां अपने कर्मचारियों को काउंसिलिंग सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। मगर गर्दन का दर्द, कमर का दर्द, शायद हर किसी को है और हम ध्यान भी नहीं देते। ऐसा मान लिया है कि आधुनिक जीवन का ये तो एक अंश है।
लेकिन जब आप पूर्ण स्वस्थ नहीं हों तो काम पर असर तो पड़ेगा। एचआर डिपार्टमेंट कहता है, एक सेमिनार कर लेते हैं। भाई, एक सेमिनार से कुछ नहीं होगा। अगर आपको रिजल्ट चाहिए तो छह से आठ हफ्ते का प्रोग्राम करिए। मेरे फिजियो ने उदाहरण दिया गुजरात की एक कम्पनी का, जहां सारी फेसिलिटी थीं, मगर लोग खाने-पीने के शौकीन और व्यायाम में आलसी।
तो वहां उन्होंने नीचे से ऊपर तक सभी एम्प्लाईज को फिटनेस की ओर प्रेरित किया। सिखाया, अभ्यास करवाया, पसीना बहवाया। फिर एक चैलेंज भी रखा, जिसका नाम था- बिगेस्ट लूजर। यानी कि सबसे ज्यादा वजन कौन लूज कर सकता है, जिसके लिए एक्सरसाइज के साथ सही और पौष्टिक खाने पर भी जोर दिया गया।
कुछ ही महीनों में बदलाव साफ नजर आने लगा। ऑफिस में उपस्थिति बढ़ गई और प्रोडक्टिविटी भी। हलके जिस्म और भारी जोश के साथ काम होने लगा। साल के अंत में उस एक कम्पनी के 300 कर्मचारियों ने मुम्बई मैराथन में भाग लिया। हेल्थ का लक्ष्य तो पूरा हुआ ही, साथ में टीम-बिल्डिंग खुद-ब-खुद हो गई।
इस देश में पढ़ाई को बहुत ज्यादा अहमियत दी जाती है, खेलकूद को कम। और पढ़ाकू बच्चा बड़ा होकर सिर्फ दिमाग का इस्तेमाल करता है। ना तो हम कुएं से पानी निकालते हैं, ना घी मथते हैं, ना बाण चलाते हैं, ना गाय चराते हैं। बस गाय की तरह मुंह जरूर चलता रहता है…
खैर, सच बताऊं तो कठिन तो लग रहा है, लेकिन मैंने ठान ली है कि दर्द के साथ जीना अब मुमकिन नहीं। क्योंकि अगर आज आलसी हो गई तो बीस साल बाद क्या हालत होगी? उम्र लम्बी होती जा रही है, अस्सी साल जीना अब आम बात है, तब आपकी जीवन की गाड़ी होगी टूटी-फूटी या चमकती हुई विंटेज कार? आज से ध्यान दीजिए, बॉडी पर काम कीजिए। फायदे मिलेंगे हजार!
25 से 40 की उम्र में इतना पता नहीं चलता। पैसे कमाने की होड़ में हम सब अपनी बॉडी का भुर्ता बनाते हैं। तकलीफ चालीस के बाद भुगतनी पड़ती है। ज्यादातर लोग तब हरकत में आते हैं, जब दर्द सहन नहीं होता।