हमारे भोजन में वैरायटी खूब है, शाकाहारियों को कभी खाने की कमी नहीं महसूस होगी
29.07.2022
कुछ साल पहले पेरिस में एक जानकार मुझे किसी उम्दा रेस्तरां में लेकर गए। बहुत सुंदर सजावट थी, मगर जब मैन्यू देखा तो मैं उदास। वेटर से पूछा कि भाई, वेजीटेरियन में क्या मिलेगा? उसने हल्की-सी नाक चढ़ाई और कहा, कुछ करता हूं। उस दिन मैंने लंच में खाया, मक्खन में भूने गए पतले कटे बैंगन। साइड में ब्रेड और सलाद के पट्टे। मेजबान को बुरा न लगे, सो मैंने कहा बहुत बढ़िया लगा। बेचारे ने अच्छा-खासा बिल भी भरा।
खैर, होटल पहुंचकर मैंने अपने बैग से निकाले थेपले और अचार। तब लगा कि हां, कुछ खाया है। वैसे मेरा उसूल था कि बाहर के देश में वहीं के खाने का मजा लेना चाहिए। मगर आखिर हारकर मैंने भी एमटीआर और हलदीराम से नाता जोड़ लिया। वैसे पिछले दशक में बदलाव आया है। आजकल यूरोप में नई पीढ़ी में चेतना आई है, उन्होंने मीट खाना छोड़ दिया है।
बल्कि एक कदम आगे, उन्होंने दूध और दूध से बने हुए दही, पनीर, चीज़ इत्यादि भी त्याग दिए। वो अपने आपको वीगन कहते हैं। क्योंकि वो मानते हैं कि गाय का दूध उसके बच्चे के लिए होता है, मनुष्य के लिए नहीं। मुझे कुछ अटपटा लगा, क्योंकि हमारी संस्कृति में तो गाय का दूध सर्वोत्तम माना जाता है। लेकिन सोचने की बात ये है कि आज हम उस सदी में नहीं रहते, जहां गाय को गोमाता का सम्मान दिया जाता हो।
आज हम पी रहे हैं डेयरी का दूध, जो हॉर्मोन की मदद से, औद्योगिक पैमाने पर उत्पन्न होता है। खैर, मैं आपको कोई सलाह नहीं दे रही कि आप किस तरह का खाना खाएं। मैं खुद शाकाहारी हूं, लेकिन ये मेरी अपनी चॉइस नहीं थी। ऐसे परिवार में मेरा जन्म हुआ। जैसे मैं बड़ी हुई, होस्टल में पढ़ने गई, कई बार लोगों ने कहा, ट्राय तो करो। उस वक्त मेरी अंतरात्मा से आवाज उठी और मैंने कहा, नो थैंक्स।
हमारे पूर्वजों के पास इतनी क्षमता नहीं थी। पुरानतकाल में आप जहां रहते थे, उसी जगह जो मिलता था, वो आपकी डाइट बन जाती थी। राजस्थान में चूंकि सब्जियां कम उगती थीं, इसलिए वहां बेसन के गट्टे और केर-सांगरी का चलन हुआ। बंगाल में मछली और चावल खाने की प्रथा थी, क्योंकि समुद्रतट पर वही खाना उपलब्ध था, पौष्टिक भी था। लेकिन अब दुनिया बदल गई है। हम खाते हैं न्यूजीलैंड के सेब और साउथ अफ्रीका के संतरे।
आज हर तरह के फल-सब्जी-अनाज बारह महीने मिलते हैं। उत्तर भारत ने डोसा अपना लिया है और दक्षिण ने चपाती। यानी कि हम क्या खाते हैं, ये हमारी मर्जी और हमारे मूड के मुताबिक होता है। आजकल दोस्तों के प्रेशर में आकर या फिर विद्रोह करने के मूड से शाकाहारी परिवार के बच्चे भी छुप-छुपकर नॉनवेज खाते हैं। और इसमें गर्व भी महसूस करते हैं। खासकर बीफ यानी गाय का मांस खाना एक तरह का स्टेटमेंट बन गया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि दूसरी तरफ एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट काउंसिल ने अपने कॉलेज में बीफ बैन कर दिया है। क्योंकि मांस उद्योग द्वारा पशुपालन की वजह से पर्यावरण नष्ट हो रहा है। इसे कहा जा रहा है क्लाइमेट चेंज, जिसके कारण दुनिया भर में तापमान साल-दर-साल बढ़ रहा है। दूसरी ओर, जो जानवरों से प्रेम रखते हैं, उन्हें जरा सोचना चाहिए।
जो मीट आप सुपरमार्केट से प्लास्टिक पैकिंग में खरीदते हैं, वो कभी एक जीते-जागते प्राणी का हिस्सा था। एक बार, सिर्फ एक बार, कसाईखाने का दर्शन जरूर कीजिए। असल जिंदगी में न सही, यूट्यूब पर वीडियो ही देख लें। शायद आपका नजरिया बदल जाए… हमारे खाने में वैरायटी खूब है, शाकाहारियों को कभी कमी नहीं महसूस होगी। दुनिया भर में लोग वेजीटेरियन बन रहे हैं, हमारे लिए बहुत बड़ा मौका है।
जिस तरह इटली के पिज्जा और मैक्सिको के टैको हर देश में मिलते हैं, हमारा इडली-डोसा, पोहा-उपमा, रोटी-सब्जी भी पॉपुलर हो सकती हैं। दुनिया जो रास्ता अपना रही है, हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले अपना लिया था। बस, लॉजिक और फैक्ट्स द्वारा हमें इसके फायदे समझाए नहीं। जो आज की युवा पीढ़ी का मन जीतने के लिए जरूरी है। शाकाहारी हैं तो बने रहिए, अहिंसा के पथ पर चलते रहिए।
आज दुनिया भर में लोग वेजीटेरियन बन रहे हैं। हमारे लिए बड़ा मौका है। जिस तरह इटली के पिज्जा और मैक्सिको के टैको हर देश में मिलते हैं, हमारा इडली-डोसा, पोहा-उपमा, रोटी-सब्जी भी पॉपुलर हो सकती हैं।