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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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बाहर की दुनिया में शोर इतना है कि हमें अक्सर अपनी इनर-वॉइस सुनाई नहीं देती है

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16.02.2022

मुम्बई की लोकल ट्रेन में ना जाने कितनी जिंदगियां अप-डाउन करते-करते गुजर गईं। कुछ दोस्ती हुई, कुछ रिश्ते जुड़े। एक ऐसा ही रिश्ता जन्मा दो जाने-माने कलाकारों के बीच। एक थीं गायिका, हालांकि उस वक्त उनका कोई खास नाम नहीं था। और दूसरे थे अभिनेता, जो कुछ फिल्में कर चुके थे, लेकिन आम आदमी उन्हें पहचानता नहीं था। खैर, गायिका का इंट्रोडक्शन करते हुए आपसी दोस्त ने कहा, इनकी आवाज बहुत अच्छी है। आप सुनोगे तो पसंद करोगे।

अभिनेता ने उनके नाम पर गौर किया। और फिर एक टिप्पणी दी- कि मराठी बोलने वालों का उर्दू उच्चारण सही नहीं होता। इसलिए उनका गाया गीत दाल-भात की तरह लगता है। ओह हो हो हो, ये सुनकर गायिका को बड़ा बुरा लगा। लेकिन कुछ चिंतन-मनन के बाद उन्हें लगा कि टिप्पणी सही थी। तो फिर क्या किया जाए? उन्होंने एक टीचर ढूंढा, उर्दू सीखना शुरू किया। काफी मेहनत और लगन से। नतीजा ये कि जिस अभिनेता ने टिप्पणी दी थी, वो ही इस गायिका को आगे चलकर अपनी फिल्मों में रिकमेंड करने लगे।

ये किस्सा था 1947 का। दोनों शख्स बहुत सुप्रसिद्ध हुए। गायिका थीं लता मंगेशकर और अभिनेता थे दिलीप कुमार। काफी पुरानी बात है पर जरा सोचिए, आपकी और मेरी जिंदगी में भी कुछ ऐसा होता है। लोग तरह-तरह की टिप्पणियां देते हैं। तो फिर सवाल उठता है- किसकी बात सुनें और किसको नजरअंदाज कर दें? एक होते हैं शुभचिंतक जैसे कि हमारे माता-पिता। उनका काम है सलाह देना, चाहे आप 4 साल के हों या 40 के। कौन-सी डिग्री आपको लेनी चाहिए, कौन सी नौकरी और हां, कौन-सा लाइफ पार्टनर।

अगर आप इन मामलों में उनकी बात मान लें, लेकिन दिल स्वीकार न करे, तो जिंदगी बर्बाद हो जाती है। मेरे पिताजी चाहते थे मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूं, लेकिन उस तरफ मेरा कोई रुझान नहीं था। जब बारहवीं के बाद साइंस छोड़कर मैंने आर्ट्स लिया तो लोगों को आश्चर्य हुआ। कुछ ने कहा कि ‘ये तो बड़ी इंटेलीजेंट थी।’ यानी कि रातों-रात मैं उनके हिसाब से बेवकूफ हो गई। पर मेरे मन की आवाज मुझे जो राह दिखा रही थी, वह मेरे लिए सही थी। कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले आप इसी ‘इनर वॉइस’ को कंसल्ट करें।

बाहर की दुनिया में शोर इतना है कि हमें अक्सर ये आवाज सुनाई नहीं देती। तो अपने आपको थोड़ा ट्रेंड कीजिए। रोज सुबह पांच या दस मिनट ध्यान कीजिए। शुरू में हर तरह के खयाल दिमाग में आएंगे पर अभ्यास करते-करते मन स्थिर हो जाएगा। अंदर की आवाज आपको साफ-साफ सुनाई देगी। तो फिर सवाल आता है लोग टिप्पणी क्यों देते हैं? बस यूं ही। याद करो जब आप अच्छी तरह तैयार होकर किसी पार्टी में गए। वहां आपके दूर के रिश्तेदार ने देखते ही कहा, अरे तू तो काफी मोटी हो गई है।

आप पूरी शाम उस कमेंट को मन में उलट-पलट करते रहे, कुढ़ते रहे। मगर क्यों? किसी को भी आपकी मन की शांति भंग करने का अधिकार ना दें। हां, लता जी की तरह अगर आपको एहसास होता है कि ‘ये एक कड़वा सच है’ तो आपके सामने दो रास्ते हैं। कुछ एक्शन लीजिए (आंटी जी को इंप्रेस करने के लिए नहीं, अपनी सेहत की खातिर) या फिर आप जैसे हैं वैसे ही अपने को स्वीकार कीजिए। ‘लव योरसेल्फ एज़ यू आर।’ जब आप पर कुछ असर ही नहीं होता तो बोलने वाले खुद चुप हो जाएंगे।

शुरू में लोगों ने कहा कि लता जी की आवाज बहुत महीन है, उनका करिअर नहीं चलेगा। आगे जाकर यही आवाज उनकी पहचान बनी, देश की शान बनी। इसलिए चाहे आप व्यापारी हैं या कलाकार, दूसरों की बातों में अक्सर अपना यूएसपी, अपनी खासियत ना खो दें। 11 किताब लिखने के बाद मेरे आलोचक कहते हैं कि आप हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण क्यों करती हैं?

भाई, ये मेरा स्टाइल है और ज्यादातर लोगों को पसंद आता है। जिन्हें मजा नहीं आता, वे मेरी किताबें ना पढ़ें। कोई दिक्कत नहीं है। हां आत्म विकास का प्रयास हमेशा जारी रहे। ना मैं ‘परफेक्ट’ हूं ना आप। ना आपके भाई-बहन या माता-पिता। बस आदत से मजबूर होकर हर वक्त टिप्पणी ना दें। हर किसी की बात को दिल पर ना लें।

 

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