रात के उल्लू नहीं, सुबह की चहकती चिड़िया बनिए, मनोविशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अपने मोबाइल को अलग कमरे में सुलाइए
04.01.2021
कल रात मुझे ठीक से नींद नहीं आई। काफी देर तक मैं करवटें बदलती रही। नींद से कहा-आ आ आजा, आ आ आजा, आ आ आजा, आ आ आ! मगर वो कहीं सैर- सपाटे पर निकली हुई थी। आखिर हार कर जब सोचना बंद किया तो फिर चुपके से, पीछे से वो मुझसे आकर लिपट गई। और जिंदगी की रेस में भागने वाली देह का वाहन चंद घंटों के लिए खामोश हो गया।
जरा सोचिए, चैन की नींद एक ऐसी चीज है जो ना पैसे से खरीदी जा सकती है, ना किसी को भेंट हो सकती है। लेकिन है वह बेहद कीमती। एक दिन रात भर आप जागे, तो अगले दो दिन बर्बाद। वैसे मार्केट में नींद की गोलियां धड़ाधड़ बिक रही हैं, मगर इनका नित्य सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। लग भी लग जाती है।
आखिर आज नींद ना आने की शिकायत इतनी आम क्यों हो गई है? एक तो हम शरीर को ज्यादा कष्ट देते नहीं। किसी मजदूर को देखो-कड़ी मेहनत के बाद वह सड़क के किनारे गहरी नींद का आनंद ले रहा है। जबकि नरम बिस्तर पर एसी वाले कमरे में, पोपटलाल सेठ छत ताक रहे हैं। शायद अपने व्यापार की समस्याओं से परेशान, या फिर परिवारजनों से।
वैसे प्रकृति के अनुसार सूरज ढलने के बाद इंसान भी कामकाज बंद करता था। मगर बिजली इजाद हुई और फिर इंटरनेट। एक जमाने में टीवी सीरीज का मतलब था, हफ्ते में एक बार एक नया एपिसोड। फिर हुआ रोज का एक एपिसोड। आज, ओटीटी के माध्यम पर कोई सीमा ही नहीं। सीरियल बनता है लेज़ की चिप्स की तरह, बैठे रहो चुगते रहो। कब सुबह के तीन बज गए, पता नहीं।
काम के सिलसिले में भी हम अपनी नींद को गिरवी रखने को तैयार हैं। कुछ प्रोफेशंस में तो जरूरी है जैसे डॉक्टर हो या पुलिस या फिर ट्रेन और प्लेन के चालक। मगर ज्यादातर हम अपनी मर्जी से अपना कॅरिअर आगे बढ़ाने के लिए नींद का बलिदान देते हैं। चाहे ओवरसीज़ क्लाइंट की डिमांड हो या फिर सुबह की पहली फ्लाइट पकड़नी हो। जागते रहो, भागते रहो।
स्टूडेंट लाइफ में भी रातभर जागकर पढ़ने का पुराना रिवाज है। वैसे एन वक्त पर वही काम आता है जो पहले से दिमाग में घुस गया हो। मगर आखिरी रट्टा मारने का लालच तो रहता है। साथ में कड़क चाय-कॉफी और मसाला मैगी का मजा कौन भूल सकता है। जवानी के जोश में हर कोई मदहोश, ईश्वर की कृपा से पास हो गए।
हम अनेक देवी देवताओं को मानते हैं, पूजते हैं। इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं कि नींद की भी एक देवी हैं, निद्रा देवी, जिनका जिक्र रामायण में है। जब राम जी और सीतादेवी को वनवास हुआ, तो लक्ष्मण भी उनके साथ चल पड़े। उन्होंने अपने बड़े भाई की रक्षा करने का वचन लिया था, सो रात भर पहरा देते थे।
निद्रादेवी प्रकट हुईं, बोली, ये तो मेरा अनादर है। लक्ष्मण जी बोले, मैं सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहा हूं। अब करें क्या? आखिर समझौता ये हुआ कि लक्ष्मण जी के बदले उनकी पत्नी उर्मिला 14 साल तक नींद में रहेंगी, ताकि उनके पति पूरे 14 साल जाग सकंे। आज की भाषा में इसे हम ‘आउटसोर्सिंग’ का एक बढ़िया उदाहरण मानेंगे।
वैसे नींद के मामले में सबसे प्रसिद्ध है कुंभकरण। कड़ी तपस्या के बाद जब ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए तो ‘इंद्रासन’ के बजाय उन्होंने ‘निद्रासन’ की मांग की। बड़ी मिन्नतों के बाद, ब्रह्मा ने कहा ठीक है, तुम छह महीने सोते रहोगे और छह महीने जागोगे। और सोने के अलावा कुंभकरण का एक ही शौक था-खाना।
आज लक्ष्मण तो ढूंढने से भी ना मिले, पर हर घर में कुंभकरण है। जो पचास बार अलार्म बजने पर भी नहीं जागता। जो इतना चटोरा है कि अच्छे-खासे डिनर के बाद भी सोच रहा है, ‘स्विगी पर क्या मंगाऊं।’ आलसदेव की तपस्या करते-करते इनकी लाइफ में प्रकट होते हैं दो राक्षस, जिनके नाम हैं मोटापा और मधुमेह। आखिर उपाय क्या है? एक मनोचिकित्सक ने बखूबी कहा कि अपने मोबाइल को अलग कमरे में सुलाइए। छह-सात घंटे की सुखद नींद स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। रात के उल्लू नहीं, सुबह की चहकती चिड़िया बनिए। गुडमॉर्निंग वाट्सएप पर नहीं, सूर्य देवता को करिए।