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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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मिस्र में टूरिस्ट एरिया के बाहर का ‘काहिरा’ काफी कुछ दिल्ली जैसा लगता है

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24.11.2021

मुझे घूमने-फिरने का बहुत शौक है। मगर चाहे देश हो या विदेश, मैं सिर्फ स्मारक, संग्रहालय और सीनरी नहीं देखना चाहती। मैं शहरों की गली-कूचों से गुजर कर, वहां के आम आदमी की जिंदगी की एक झलक देखना चाहती हूं। वहां की नब्ज़ पकड़ना चाहती हूं। और यही मैंने हाल में किया काहिरा शहर में।

इजिप्ट यानी मिस्र के दो पहलू हैं। एक तो वो रूप जो पर्यटक देखता है, जिसमें हैं विशाल पिरामिड, भव्य मकबरे और प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर। हालांकि आज वहां कोई पूजा नहीं होती, इसलिए वो खंडहर समान हैं। इनमें से पिरामिड दुनिया के सात अजूबों में से एक माने जाते हैं और हर व्यक्ति के मन पर उनका प्रभाव जरूर पड़ता है।

मगर साथ-साथ आपको महसूस होता है कि टूरिज़्म के नाम से आपको किस तरह उल्लू बनाया जाता है। गाइड आपको ऐसी दुकानों में लेकर जाता है, जहां दाम दो या तीन नहीं दस गुना बढ़े हुए हैं। वहां हल्की से बार्गेनिंग करके आप खुश हो जाते हैं और बेचने वाले की चांदी। वैसे कहानियां इतनी स्टाइल से सुनाते हैं कि दाद देनी पड़ेगी।

सबसे ज्यादा कलाकारी होती है परफ्यूम यानी कि इत्र की दुकान में। चिकनी-चुपड़ी बातों में मंत्रमुग्ध करके सेल्समैन आपको एक नहीं चार शीशियां बेच देता है। वैसे अगर आम जनता वाली मार्केट में आप जाओ तो वहां कोई ऐसी दुकान मौजूद ही नहीं। क्योंकि अपने देशवासियों को बुद्धू बनाना मुमकिन नहीं।

टूरिस्ट एरिया के बाहर का काहिरा काफी कुछ दिल्ली जैसा लगता है। एक है पुराना शहर, जहां का खान-ए-खलीली मार्केट हमारे चांदनी चौक की हूबहू कॉपी लगता है। हर तरफ भीड़, हर तरफ जश्न। कुछ खरीदने का, कुछ खाने का, कुछ मन बहलाने का। सिर्फ अरबी भाषा पराई लगती है, माहौल तो वही अपना है।

दूसरी तरफ, जैसे दिल्ली के आस-पास नोएडा और गुड़गांव बस गए, वैसे यहां पर न्यू काहिरा बना है। यहां पर हर घर एडवर्टाइज होता है ऊंचे-ऊंचे स्लोनग के साथ, जैसे कि ‘लाइव इन कैलिफोर्निया होम्स।’ लंबी सड़कों पर एक जैसी दिखने वाली हजारों कोठियां और मनोरंजन का बस एक ही साधन- मेगामॉल। अब चाहे मॉल अमेरिका का हो या दुबई का, आपको लगभग वही दुकानें मिलेंगी।

वही जाने-माने कपड़े और जूतों के ब्रांड्स। मैंने काफी ढूंढा कि इजिप्ट की कोई लोकल कंपनी से मैं कुछ खरीदूं। क्योंकि यहां का कॉटन प्रसिद्ध है। मगर काश, पूरे मॉल में सिर्फ एक ऐसी दुकान नजर आई और वहां ज्यादा वैराइटी भी नहीं थी। भारत में भी एमएनसी भरपूर हैं, मगर उनकी टक्कर में देसी ब्रांड्स भी मौजूद हैं। जहां मार्क एंड स्पेन्सर, वहां फैब इंडिया भी मिलेगा। ग्राहक दोनों पसंद करते हैं।

एक और अचंभे की बात ये है कि न्यू काहिरा पहुंचने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं। जबकि आज दिल्ली एनसीआर मेट्रो द्वारा पूरी तरह जुड़ी हुई है। पर चाहे न्यू काहिरा हो या ओल्ड काहिरा, किसी इंडियन को पहचान कर लोग हंसते हुए बोलते हैं ‘शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन’ जैसे कि वो मेरे-आपके कोई सगेवाले लगते हैं। जब कुछ ने हृतिक रोशन और अक्षय कुमार का भी जिक्र किया तो विश्वास हुआ कि भाई, फेंक नहीं रहे हैं, हमारी पिक्चरें देख रहे हैं।

आज से चालीस साल पहले, लेखक अमिताभ घोष ने इजिप्ट में दो साल बिताए। वो एक छोेटे से गांव में अपनी थीसिस के लिए रिसर्च कर रहे थे। उस वक्त भी ‘अफलाम-अल-हिंदेया’ यानी कि हिंदी फिल्मों के गांवों की वजह से वो लोगों के करीब आ पाए। क्योंकि गाने की भाषा दिल की भाषा होती है।

मगर उस जमाने में एक और प्रसिद्धि भारत ने इजिप्ट में पाई। इस रेगिस्तान में हर गांव, हर कस्बे में पानी का पंप जाना जाता था, ‘मकाना हिंदी’ के नाम से। क्योंकि वो बनाया गया था भारत में, किर्लोस्कर कंपनी द्वारा। एक्सपोर्ट का ये सिलसिला तब शुरू हुआ था जब 1960 में नसीर ने इंदिरा गांधी से सहायता मांगी थी।

टूर के आखिरी पड़ाव में हमें मिला भारत के इंजीनियर्स का एक जत्था, जो तीन साल से अस्वान शहर में अमोनिया का प्लांट सेट-अप कर रहे हैं। सुनकर बड़ा अच्छा लगा। मुझे घूमने-फिरने का शौक है। मगर अब घर की याद आ रही है।

 

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