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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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Pahaadi Gaanv ka Iskool

Pahaadi Gaanv ka Iskool
4.7
(24)

by Nidhi Arora

आह दो प्रकार की होती है। पहली, जो तब निकलती है, जब आप किसी पहाड़ी गाँव में पहली बार आते हैं। दूसरी, जब आप किसी पहाड़ी गाँव में बहुत समय तक रहते हैं।

मेरी आह दूसरे प्रकार की थी।

पहली आह में होता है आनंद। “देखो! कितनी सुंदर जगह है! मानो धरती पर स्वर्ग हो! हमें यहाँ पहले आना चाहिए था! प्रकृति कितनी सुंदर है!”

दूसरी आह में होता है उच्छ्वास! “अच्छा, रमिया की बहु मर गई? बाघ फिर दमड़ू का मेमना उठा ले गया? बच्चों का स्कूल इस चौमासे में भी ढह गया?”

मेरी आह, जैसा कि मैंने बताया, दूसरे प्रकार की थी!

कुछ नया नहीं हुआ था। हमारे बच्चों का स्कूल इस चौमासे में भी ढह गया था। हर दो-तीन साल में यही होता है। ठेकेदार को ठेका दिया जाता है। बच्चे परीक्षा की तैयारी पेड़ों के नीचे बैठ कर करते हैं। मार्च तक स्कूल बन कर तैयार होता है। जुलाई में चौमासा।

बच्चों की दसवीं की परीक्षा है। इस बार की पौध भी हार मानने को राज़ी नहीं। सब बच्चे मिल कर आए हैं। भले दिन थे जब बड़े बच्चों को कटघरे में खड़ा करते थे। अब बच्चों ने हमारी पेशी लगा रखी है।

14 साल का मनकू है सबसे छोटा, और इसकी जीभ सबसे लंबी! “मैं सातवीं में था, जब स्कूल नया बना था। तीन साल में कोई इमारत ढहती है भला? हर 2-3 साल में स्कूल की इमारत ढहेगी, तो बच्चे पढ़ेंगे कहाँ और परीक्षा कैसे देंगे ? नाम गाँव का रोशन करने को कहते हो सरपंच जी, उपले बनाने के ओलिंपिक्स में हम करेंगे नाम रोशन?”

ठेकेदार भी कम घाघ नहीं था। “बेटा, पहाड़ों की बारिश तो सब जानते ही हैं! ऊपर से स्कूल तलहटी में है, नीची जगह। इतना पानी भर जाता है। सिमेन्ट भी कितना सहेगा! शिकायत करनी है, तो भगवान से करो बेटा। पानी मेरे घर से तो नहीं बरसता!”

“पानी आपके घर पर भी तो नहीं बरसता ठेकेदार जी! हमारे स्कूल का सिमेन्ट ठहरा रेत, आपके घर का सिमेन्ट इस्पात! बारिश गिरती जाए, गिरती जाए, कोई फरक नहीं। न जंग, न जाला, तेरा घर काला!”

ठेकेदार ने खिसिया कर सरपंच की ओर देखा। इंसान प्रिन्सपल को चुप कर दे, टीचरों को भी धमका दे, पर बच्चे तो आजकल के किसी के बस ना आते!

सरपंच ने 150 बच्चों के सामने शांति प्रस्ताव रखने में ही भली समझी।

“तो बताओ बच्चो, ठेकेदार बदल दें? या स्कूल की जगह बदलने कि अर्जी दे दें? सारे गाँव का पानी जा कर उसी स्कूल की इमारत में जमा होता है। अब तो तुम लोग समझदार हो। जो कहोगे, वही कर देंगे!”

मनकू की अकल के घोड़े दौड़ कर समस्या तक तो पहुँच सकते थे, समाधान तक पहुँचने का सामर्थ्य उन में न था। वो तो निकाला पीछे बैठे बचकू ने।

बचकू, – यथा नाम, तथा रूप। उसे कोई देखता भी न था स्कूल में। ढाई फूट का नहीं था, और परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के अलावा उस में कोई गुण न था।

उसकी धीमी सी आवाज आई, “किताब में पढ़ाते हैं, कि जिला कलेक्टर तइँ अर्जी देते हैं। हम दो बातों की अर्जी देवेंगे – 1. गाँव के बरसाती नाले, जो पहले नदी तक जाते थे, उनकी मरम्मत करवाओ। पानी बरसाती नालों से नदी तक पहुंचेगा, तो स्कूल में न भरेगा। और 2, जो स्कूल 20 साल से पहले टूटे, तो उसकी मरम्मत ठेकेदार अपने पैसे से कराए। ठेके में यही लिखा हो। ”

सरपंच ने कुछ बोलने से पहले उसने इधर उधर देखा। सर सहमति में हिल रहे थे। उसे सहमति में सर हिलाने के अलावा कोई अच्छा रास्ता न सूझा। आखिर ठेकेदार ठेकेदार होता है, और चुनाव चुनाव।

यही हुआ। अर्जी भी गई। कलेक्टर ने बच्चों को शाबाशी भी दी, और ठेकेदार खसियाया भी। बस उसके बाद न हुआ, तो स्कूल का टूटना न हुआ।

This piece was written during Rashmi Bansal’s Short Story Writing Workshop.

 

 

 

 

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10 thoughts on “Pahaadi Gaanv ka Iskool

  1. Thank you so much! This is my first story to get published! 🙂 am over the moon.

  2. Nidhi amazing and the way you narrated was superb. When I was listening to your story I actually felt it happening. Beautifully woven. Real and natural.

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