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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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मानो या ना मानो

मानो या ना मानो
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by Himalya Bansal

गर्मियों के दिन थे और मैं वृन्दावन से वापिस गाड़ी चलाकर नॉएडा आ रहा था। साथ में मम्मी थीं, वो गाड़ी में पिछली सीट पर बैठी थीं। मेरी पत्नी और बेटी को साथ नहीं लिया था, क्यूंकि पत्नी पेट से थी । मौसम अच्छा था तो गाड़ी चलाने में भी मज़ा आ रहा था, ऊपर से जाने से पहले लता मंगेशकर जी के गाने pendrive में दाल लिेये थे।

‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ गुनगुना रहा था कि अचानक वाइफ का फ़ोन आया । मन में घबराहट कि लेबर पेन तो स्टार्ट नहीं हो गया क्यूंकि वह बिलकुल अकेली थी। सिर्फ वो और बेटी। खैर उसने बताया कि आज बालकनी में एक तोता आया है।

मेने कहा, “मज़ाक मत करो” । उसने कहा “तुम्हारी कसम”। खैर, मान लिया पर दिल मानने को तैयार नहीं था क्यूंकि नॉएडा में २५वीं फ्लोर पर बालकनी में “तोता” आया है, कोई विश्वास नहीं करेगा । बातें चलती रहीं और बीवी ने तोते को मिर्ची खिला दी ।

३ घंटे की ड्राइविंग के बाद घर पहुँचा। मन में अजीब सी जिग्‍यासा थी तोते देखने की। घर में घुसा,  हाथ धोये और  इतनी फुर्ती से बालकनी में पहुँचा जैसे की ‘भाग मिल्खा भाग’ मूवी के ‘फ्लाइंग सिख’ की आत्मा मुझ में आ गयी थी।

आज भी याद है वो पल जब तोता पलट कर “मिठ्ठू मिठ्ठू” बोल रहा था। पहली बार किसी तोते को अपने हाथों से टच किया, उसको प्यार किया। घर पर ब्रेड बटर था । पर तोता कुछ खाने को राज़ी ही नहीं, जितनी भी चीज़ खाने को थी घर पर, सब परोस कर देख लीं पर तोता देखकर मुँह फेर लेता । जद्दोजहद चलती रही । न तोता खाने को राज़ी और न मैं उसे खिलाये बिना मानाने वाला ।

आधे घंटे के मनुहार के बाद अचानक से देखा,  बीबी गुड़िया को वृन्दावन का प्रशाद खिला रही थी । मैने सोचा की क्यों न बांके बिहारी जी का पेड़ा ही तोते को खिलाकर देख लूँ । प्रयास किया और मेरी मनोकामना पूरी हो गयी । तोते ने अपनी लाल चोंच से पेड़े को कुतर-कुतरकर खाना शुरू किया और पूरा पेड़ा खा लिया । फिर अचानक से हमारी मम्मी आयी, गुड़िया, बीबी – सबने खिलाया ।  “मिठ्ठू मिठ्ठू” कहकर बुलाते रहे हम तोते को और तोता पेड़े खाते रहा, मानो भगवान कृष्ण साक्षात आकर प्रसाद  गृहण कर रहे थे ।

उस दिन से हमारी आस्था वृन्दावन और भगवान कृष्ण में बहुत बढ़ गयी ।

वो तोता तो चला गया लेकिन हमने घर पर एक नकली तोता लाकर टांग रखा है । आज मेरी गुड़िया ७ वर्ष की है । वो आज भी तोते को “मिठ्ठू मिठ्ठू” बुलाकर खेलती है।

This piece was written during Rashmi Bansal’s Short Story Writing Workshop. Please excuse any minor typing errors!

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7 thoughts on “मानो या ना मानो

  1. I was witness to this story creation as part of that workshop!!! Given time constraint, this is brilliant work!!!

  2. Sweet!! A positive mind will see a blessing everywhere!! And soon it manifests!!

  3. Being part of this workshop, this was one of the most beautifully written stories in such a short time. ?

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