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0 (0) Rashmi Bansal is a writer, entrepreneur and a motivational speaker. An author of 10 bestselling books on entrepreneurship which have sold more than 1.2 ….

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आज के अनगिनत बकासुरों का सामना कौन करेगा?

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12.05.2021

यूं तो आंकड़ों से मुझे खास प्रेम नहीं, शब्दों की ओर रुझान है। पर आजकस रोज एक आंकड़े का इंतजार करती हूं। आज कोरोना के केस में क्या उतार-चढ़ाव हुआ? जीवन के सेंसेक्स ने कब हमारे देश, दिमाग व दिल पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया, पता नहीं चला। और कब इसके जंजाल से निकलेंगे, उसका भी अनुमान करना मुश्किल है।

दूसरी तरफ, शेयर बाजार वाला सेंसेक्स एक ही दिशा में चल रहा है, वो है ऊपर। कहते हैं अर्थव्यवस्था कोविड से हिली हुई है, उत्पादन में मंदी है। मगर पैंडेमिक के दौरान बीएसई सूंचकांक ने 31,000 से 49,000 तक छलांग मार दी। आपके, मेरे शरीर में इम्युनिटी हो न हो, शेयर बाजार दुनिया की परेशानियों से अच्छी इम्युनिटी पा चुका है।

गर आप पूरे साल हाथ पर हाथ रख कर बैठे थे, आपके इंवेस्टमेंट ने खुद ही नाच-नाचकर जेब भारी कर दी। और जिन लोगों ने कड़ी मेहनत की, चाहे वो डॉक्टर हो, या पुलिस कर्मचारी, उन्हें कोई ऐसा फायदा न मिला। बल्कि कई को तो तन्ख्वाह भी समय पर नहीं मिली। और कुछ तो जान तक खो बैठे।

जहां एक तरफ नेक इंसानों ने अजनबियों को ऑक्सीजन व दवाई पहुंचाई, वहीं दूसरों को ओछेपन दिखाने का मौका मिला। अस्पतालों से शम्शानों तक, चारों ओर लूट मची है। जैसे असली भगवान सिर्फ पैसा हो। मगर जरा सोचें कि पैसा है क्या?

जब मार्को पोलो तेरहवीं शताब्दी में चीन पहुंचे, उन्हें आश्चर्य हुआ कि वहां सोने या चांदी के सिक्कों का चलन नहीं था। चीन के सम्राट कुबला खान ने एक नई मुद्रा स्थापित की जो महज कागज का टुकड़ा थी। इस कागज को किसी भी खरीदी-वसूली के लिए जायज़ माना जाएगा, ऐसा सम्राट ने ऐलान किया और लोगों ने मान लिया। यह एक क्रांतिकारी विचार था, कि अब सिर्फ विश्वास पर लेन-देन टिका रहेगा। फिर ऐसा समय आया जब हमारा ज्यादातर पैसा कागज में भी नहीं, सिर्फ हवा में रह गया। आज अगर मैं बैंक में लॉगइन करती हूं, मेरे एकाउंट में 5 लाख की बचत जमा है।

मुझे विश्वास है कि जब चाहिए मैं उसका इस्तेमाल कर पाऊंगी। यही पांच लाख अगर मुझे सिक्कों के रूप में घर में रखना पड़ते तो? हंसी आ रही है सोच कर। इसलिए पुराने जमाने में सिर्फ राजा-महाराजाओं के पास शाही खजाना होता था। आम आदमी की लाखों-करोड़ों की संख्या में बचत करने की क्षमता नहीं थी।

आज पैसे का रूप निराकार है और हमारी भूख हर सीमा पार कर चुकी है। महाभारत में बकासुर नामक राक्षस था। उसका पेट इतना विशाल था कि वो इंसानों को भी भोजन ही मानता था। गांववालों ने उससे समझौता किया कि भाई हमला न करो। रोज हम खूब सारा खाना भेजेंगे और साथ में एक इंसान।

मुझे लगता है कि आज एक नहीं, अनेक बकासुर हमारे बीच हैं। वो नेता जो सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वो अधिकारी जो कट लिए बिना काम नहीं करना चाहते। वो व्यापारी जो मौके का फायदा उठाकर पांच गुना प्रॉफिट कमा रहे हैं। वो उद्योगपति जो करोड़ों के स्कैम करने के बाद भी आजाद घूम रहे हैं।

महाभारत के राक्षस को तो भीम ने मार डाला। मगर आज के अनगिनत बकासुर का सामना कौन करेगा?
ये सारा खेल इस विश्वास पर टिका है कि एक दिन मेरा अनगिनत पैसा मेरे काम आएगा। मगर कोरोना ने हमें सिखाया है कि कल का कोई भरोसा नहीं। आज कई प्रियजनों की शोकसभा गूगल मीट पर हो रही हैं और सबके मन में एक ही भाव है। जीवनकाल में जिसने प्रेम किया, तहे दिल से सबको दिया।

उसी के लिए हम आंसू बहा रहे हैं। यादों के कारवां चला रहे हैं। क्या आपने सिर्फ पैसों का लेन-देन जमाया? दूसरों के दु:ख पर ब्याज कमाया? तो फिर इसी बकासुर रूप में अटके रहें लूप में। एक अतृत्प आत्मा जिसे कभी शांति नहीं मिल सकेगी।

 

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One thought on “आज के अनगिनत बकासुरों का सामना कौन करेगा?

  1. बहुत अचछा लिखा है।पढकर बहुत आनंद आया।

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