इज्जत वो गहना है जो आंखों से नहीं दिखता, मगर दिल में सदा के लिए चमकता रहता है 2 महीने पहले
17.02.2021
आजकल प्यार के नाम पर लोग एक दूसरे को चॉकलेट, फूल और गिफ्ट कार्ड भेजते हैं। लेकिन प्रेम का सबसे क्लासिक प्रतीक है चमकता हुआ हीरा। शायद उसकी काया ही कुछ ऐसी है या फिर बेचने वालों की मार्केटिंग इतनी खूब। जितना बड़ा हीरा, उतनी रोमांटिक मेरी लव स्टोरी। तो फिर आज सुनते हैं एक ऐसी प्रेम कहानी, जिसकी कोई बराबरी नहीं।
सन 1897 में एक लड़के ने एक लड़की को देखा और पहली नजर में प्यार हो गया। वैसे लड़का था 38 साल का और लड़की सिर्फ 18 की, लेकिन रिश्ता क्लिक हो गया। उनका 14 फरवरी 1898 को विवाह हुआ और मेहरबाई बन गईं मिसेज दोराबजी टाटा। जी हां, उनके पति थे टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा के सुपुत्र।
सन 1900 में पेरिस में एक एग्जीबीशन हुई, जहां एक अद्भुत हीरे का प्रदर्शन हुआ। उसका नाम था ‘जुबली डायमंड’। यह हीरा दक्षिण अफ्रीका की खदान में खोजा गया, तो हलचल मच गई। क्योंकि यह हीरा था 245 कैरेट का, कोहिनूर से दोगुना और दुनिया के सबसे बड़े डायमंड्स में छठे स्थान पर।
तराशने के बाद, इसमें से निकला एक बेहतरीन कट और कलर का हीरा, जिसका नाम रखा गया ‘जुबली डायमंड’, मल्लिका विक्टोरिया के सम्मान में। शायद उनके ताज में ये हीरा चार-चांद लगा सकता था, मगर किस्मत में कुछ और लिखा था। सन 1900 में एक लाख ब्रिटिश पाउंड की कीमत चुकाकर दोराबजी ने जुबली डायमंड अपनी पत्नी मेहरबाई के लिए खरीदा।
मेहरबाई चाहतीं तो ऐशो-आराम की जिंदगी बिता सकती थीं। उस जमाने की क्लब्स और किटी पार्टीज में भाग लेकर, सुंदर कपड़े और जेवर पहनकर, एक रईस आदमी की पत्नी बनकर। लेकिन मेहरबाई अलग किस्म की औरत थीं। उन्होंने औरतों के हक के लिए लड़ने की ठान ली, खासकर लड़कियों की शिक्षा के हक में और परदा सिस्टम के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई।
उन्हें स्पोर्ट्स का भी बहुत शौक था, जिसमें टेनिस उनका मनपसंद खेल था। पारसी स्टाइल से पहनी हुई गारा साड़ी में, टेनिस कोर्ट पर उनको देखकर लोग चकित रह जाते थे। लेकिन मेहरबाई आराम से अपना गेम खेलतीं और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ टूर्नामेंट्स भी जीते। यह सुनकर आज भी गर्व महसूस होता है।
दोराबजी टाटा एक बड़े उद्योगपति थे, इसलिए दुनियाभर में अपने व्यापार के सिलसिले में टूर पर जाते थे। मेहरबाई उनके साथ यात्रा करती थीं, और जानी-मानी हस्तियों से उनकी मुलाकात भी हुई। जैसे क्वीन ऑफ इंग्लैंड और अमेरिका के राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज। अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली मेहरबाई सचमुच एक सशक्त शख्सित थीं।
खैर सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। टाटा स्टील 1924 में बड़े संकट के दौर से गुजरा। कर्मचारियों को तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं थे। दोराबजी और मेहरबाई ने अपना सारा रुपया-पैसा इम्पीरियल बैंक में गिरवी रख दिया, ताकि कंपनी बचा सकें। इसमें जुबली डायमंड भी था। उसका मेहरबाई को कोई गम न था।
कुछ साल बाद टाटा स्टील की सेहत सुधर गई, लेकिन मेहरबाई की बिगड़ गई। उन्हें ल्यूकेमिया हो गया और 1931 में उनका देहांत हो गया। एक साल बाद दोराबजी टाटा भी चल बसे। दोराबजी और मेहरबाई की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी सारी धन-सपंत्ति एक ट्रस्ट के नाम पर कर दी। इसमें जुबली डायमंड भी शामिल था।
दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने 1937 में इस बहुमूल्य हीरे की बिक्री की। उन पैसों से कई संस्थान स्थापित किए गए, जैसे टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल, टीआईएसएस और टीआईएफआर। जो हीरा कभी मेहरबाई के सुंदर गले की शोभा बढ़ाता था, अब हमारे देश की शान बढ़ा रहा है। इसे मैं मानती हूं एक अमर प्रेम कहानी, आने वाली पीढ़ियों के लिए।
मेहरबाई के हाथ में असली हीरा था दोराबजी टाटा का सपोर्ट। उन्होंने अपनी पत्नी को आजादी दी, अपने तरीके से जीने की। अपनी सोच से, अपना रास्ता तय करने की। आज भी कई पति ऐसा नहीं होने देते। साथ ही, मेहरबाई ने कर्तव्य निभाया। एक उद्योगपति की बीवी होने के नाते सुख का समय भी बिताया और दु:ख में सबकुछ दाव पर लगा दिया। इसे कहते हैं इक्वल पार्टनरशिप (बराबर साझेदारी)।अपनी पत्नी को वो उपहार दीजिए, जो नीली डिबिया में नहीं बिकता। इज्जत वो गहना है जो आंखों से नहीं दिखता, मगर दिल में सदा के लिए चमकता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)